दिल दहलाने देने वाला गौमाता का कड़वा सच


 दिल दहलाने देने  वाला गौमाता का कड़वा सच 





 यदि हम गौओं की रक्षा करेंगे तो 
गौएँ भी हमारी रक्षा करेंगी |’
सदियों से अहिंसा का पुजारी भारतवर्ष आज हिंसक और मांस निर्यात
 देश के रूप में उभरता जा रहा है
यह बड़ी विडम्बना है 

जहाँ हजारों गायें रोज कटती है
हजार गौएँ , इससे दुगुनी भैसें तथा पड़वे  काटे जाते हैइसका लगभग 20,000 टन मांस विदेशों में निर्यात होता है |

     गौमाता जो आजीवन हमें अपने दूध- दही- घी आदि से पोषित करती है| अपने इन सुंदर उपहारों से जीवनभर हमारा हित करती है| ऐसी गौमाता की महानता से अनभिज्ञ होकर मात्र उसके पालन-पोषण का खर्च वहन ना कर पाने के बहाने उन्हें कत्लखानों के हवाले करना विकास का कौन सा मापदंड है ? क्या गौमाता के प्रति हमारा कोई कर्त्तव्य नहीं है ?
   




क्या आप जानते हैं! जिस गौमाता की आप पूजा करते हैं
उसे किस प्रकार निर्दयतापूर्वक मारा जाता है ?

कत्लखाने में स्वस्थ गौओं को मौत के कुँए में 4 दिन तक भूखा रखा जाता है| अशक्त होकर गिरने पर घसीटते हुए मशीन के पास ले जाकर उन्हें पीट-पीटकर खड़ा किया जाता है| मशीन की एक पुली (मशीन का पकड़नेवाला एक हिस्सा) गाय के पिछले पैरों को जकड़ लेती है | तत्पश्चात खौलता हुआ पानी 5 मिनट तक उस पर गिराया जाता है| पुली पिछले पैरों को ऊपर उठा देती है| जिससे गायें उलटी लटक जाती हैं| फिर इन गायों की आधी गर्दन काट दी जाती है ताकि खून बाहर जाये लेकिन गाय मरे नहीं | तत्काल गाय के पेट में एक छेद करके हवा भरी जाती है, जिससे गाय का शरीर फूल जाता है | उसी समय चमड़ा उतारने का कार्य होता है | गर्भवाले पशु का पेट फाड़कर जिन्दा बच्चे को बाहर निकला जाता है | उसके नर्म चमड़े को (काफ-लेदर) को बहुत महंगे दामों में बेचा जाता है|




गाय की सुरक्षा : सर्वस्व की रक्षा 




नियम का महत्व

 नियम का महत्व




 एक संत थे। एक दिन वे एक जाट के घर गए। जाट ने उनकी बड़ी सेवा की। सन्त ने उसे कहा कि रोजाना नाम -जप करने का कुछ नियम ले लो। . जाट ने कहा बाबा, हमारे को वक्त नहीं मिलता। सन्त ने कहा कि अच्छा, रोजाना ठाकुर जी की मूर्ति के दर्शन कर आया करो। . जाट ने कहा मैं तो खेत में रहता हूं और ठाकुर जी की मूर्ति गांव के मंदिर में है, कैसे करूँ ? 
 संत ने उसे कई साधन बताये, कि वह कुछ -न-कुछ नियम ले लें। पर वह यही कहता रहा कि मेरे से यह बनेगा नहीं, मैं खेत में काम करू या माला लेकर जप करूँ। इतना समय मेरे पास कहाँ है ? . बाल -बच्चों का पालन पोषण करना है। आपके जैसे बाबा जी थोड़े ही हूँ। कि बैठकर भजन करूँ। . संत ने कहा कि अच्छा तू क्या कर सकता है ? जाट बोला कि पड़ोस में एक कुम्हार रहता है। उसके साथ मेरी मित्रता है। उसके और मेरे खेत भी पास -पास है। . और घर भी पास -पास है। रोजाना एक बार उसको देख लिया करूगाँ। सन्त ने कहा कि ठीक है। उसको देखे बिना भोजन मत करना। . जाट ने स्वीकार कर लिया। 


जब उसकी पत्नी कहती कि भोजन कर लो। तो वह चट बाड़ पर चढ़कर कुम्हार को देख लेता। और भोजन कर लेता। . इस नियम में वह पक्का रहा। एक दिन जाट को खेत में जल्दी जाना था। इसलिए भोजन जल्दी तैयार कर लिया। . उसने बाड पर चढ़कर देखा तो कुम्हार दीखा नहीं। पूछने पर पता लगा कि वह तो मिट्टी खोदने बाहर गया है। जाट बोला कि कहां मर गया, कम से कम देख तो लेता। . अब जाट उसको देखने के लिए तेजी से भागा। 
उधर कुम्हार को मिट्टी खोदते -खोदते एक हाँडी मिल गई। जिसमें तरह -तरह के रत्न, अशर्फियाँ भरी हुई थी। . उसके मन में आया कि कोई देख लेगा तो मुश्किल हो जायेगी। अतः वह देखने के लिए ऊपर चढा तो सामने वह जाट आ गया। . कुम्हार को देखते ही जाट वापस भागा। तो कुम्हार ने समझा कि उसने वह हाँडी देख ली। और अब वह आफत पैदा करेगा। . कुम्हार ने उसे रूकने के लिए आवाज लगाई। जाट बोला कि बस देख लिया, देख लिया। . कुम्हार बोला कि अच्छा, देख लिया तो आधा तेरा आधा मेरा, पर किसी से कहना मत। जाट वापस आया तो उसको धन मिल गया। . 


उसके मन में विचार आया कि संत से अपना मनचाहा नियम लेने में इतनी बात है। अगर सदा उनकी आज्ञा का पालन करू तो कितना लाभ है। .ऐसा विचार करके वह जाट और उसका मित्र कुम्हार दोनों ही भगवान् के भक्त बन गए। . 


तात्पर्य यह है कि हम दृढता से अपना एक उद्देश्य बना ले, नियम ले ले  . 


"मेरे प्रभु.. 
मुझे तेरी रहमतो पर भरोसा है!
 मेरे करमों में कमी रह सकती है.
लेकिन तेरी रहमतों में नही"..
जय गुरु जी।



श्री यन्त्र की महिमा

श्री यन्त्र की महिमा 


श्री यन्त्र को यंत्र शिरोमणि श्रीयंत्र, श्रीचक्र व त्रैलोक्यमोहन चक्र भी कहते हैं । धन त्रयोदशी और दीपावली को यंत्रराज श्रीयंत्र की पूजा का अति विशिष्ट महत्व है । श्री यंत्र या श्री चक्र सारे जगत को वैदिक सनातन धर्म, अध्यात्म की एक अनुपम और सर्वश्रेष्ठ देन है। इसकी उपासना से जीवन के हर स्तर पर लाभ का अर्जन किया जा सकता है, इसके नव आवरण पूजन के मंत्रों से यही तथ्य उजागर होता है।
मूल रूप में श्रीयन्त्र नौ यन्त्रों से मिलकर एक बना है , इन नौ यन्त्रों को ही हम श्रीयन्त्र के नव आवरण के रूप में जानते हैं, श्री चक्र के नव आवरण निम्नलिखित हैं:-


1:- त्रैलोक्य मोहन चक्र- तीनों लोकों को मोहित करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
2:- सर्वाशापूरक चक्र- सभी आशाओं, कामनाओं की पूर्ति करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
3:- सर्व संक्षोभण चक्र- अखिल विश्व को संक्षोभित करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
4:- सर्व सौभाग्यदायक चक्र- सौभाग्य की प्राप्ति,वृद्धि करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
5:- सर्वार्थ सिद्धिप्रद चक्र- सभी प्रकार की अर्थाभिलाषाओं की पूर्ति करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
6:- सर्वरक्षाकर चक्र- सभी प्रकार की बाधाओं से रक्षा करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
7:- सर्वरोगहर चक्र- सभी व्याधियों, रोगों से रक्षा करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
8:- सर्वसिद्धिप्रद चक्र- सभी सिद्धियों की प्राप्ति करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
9:- सर्व आनंदमय चक्र- परमानंद या मोक्ष की प्राप्ति करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।


इसके अतिरिक्त श्रीयन्त्र का एक रहस्य ओर है कि श्रीयन्त्र वेदों, कौलाचार व अगमशास्त्रों में उल्लेखित स्वयंसिद्ध भैरवी चक्र या संहार चक्र का ही विस्तृत स्वरूप है , श्रीयन्त्र के क्रमशः 7,8 व 9 वें (बिंदु, त्रिकोण और अष्टकोण) चक्र ही संयुक्त होकर मूल स्वयंसिद्ध भैरवी चक्र है , व बाहर के अन्य 1 से 6 तक के चक्र उसका सृष्टि व   स्थिति क्रम में विस्तार मात्र है, इसीलिए श्रीचक्र या श्रीयन्त्र का समयाचार, दक्षिणाचार, व कौलाचार सहित अन्य सभी पद्धतियों से पूजन अर्चन किया जाता है !

श्रीयंत्र के ये नवचक्र सृष्टि, स्थिति और संहार चक्र के द्योतक हैं । अष्टदल, षोडशदल और भूपुर इन तीन चक्रों को सृष्टि चक्र कहते हैं। अंतर्दशार, बहिर्दशार और चतुर्दशार स्थिति चक्र कहलाते हैं। बिंदु, त्रिकोण और अष्टकोण को संहार चक्र कहते हैं। 
श्री श्री ललिता महात्रिपुर सुंदरी श्री लक्ष्मी जी के यंत्रराज श्रीयंत्र के पिंडात्मक और ब्रह्मांडात्मक होने की बात को जो साधक जानता है वह योगीन्द्र होता है । श्रीयंत्र ब्रह्मांड सदृश्य एक अद्भुत यंत्र है जो मानव शरीर स्थित समस्त शक्ति चक्रों का भी यंत्र है। श्रीयंत्र सर्वशक्तिमान होता है। इसकी रचना दैवीय है। अखिल ब्रह्मांड की रचना का यंत्र होने से इसमें संपूर्ण शक्तियां और सिद्धियां विराजमान रहती हैं। स्व शरीर को एवं अखिल ब्रह्मांड को श्रीयंत्र स्वरूप जानना बड़े भारी तप का फल है। इन तीनों की एकता की भावना से शिवत्व की प्राप्ति होती है तथा साधक अपने मूल आत्मस्वरूप को प्राप्त कर लेता है ।
श्री यंत्र का आध्यात्मिक स्वरूप पूर्ण विधान से श्री यंत्र का पूजन जो एक बार भी कर ले, वह दिव्य देहधारी हो जाता है। दत्तात्रेय ऋषि एवं दुर्वासा ऋषि ने भी श्री यंत्र को मोक्षदाता माना है। इसका मुख्य कारण यह है कि मनुष्य शरीर की भांति, श्री यंत्र में भी 9 चक्र होते हैं। 

* पहला चक्र मनुष्य शरीर में मूलाधार चक्र होता है। शरीर में यह रीढ़ की हड्डी के सबसे नीचे के भाग में, गुदा और लिंग के मध्य में है। श्री यंत्र में यह अष्ट दल होता है। यह रक्त वर्ण पृथ्वी तत्व का द्योतक है। इसके देव ब्रह्मा हैं
* दुसरा चक्र  स्वाधिष्ठान चक्र  यह लिंग स्थान के सामने है।  श्री यंत्र में इसकी स्थिति चतुर्दशार चक्र में बनी होती है। यह जल तत्व का द्योतक है। इसके देव विष्णु भगवान हैं।
* तीसरा चक्र मणीपुर चक्र यह नाभी के पीछे मेरु दंड के अंदर होता है। यह दश दल का होता है। श्री यंत्र में यह त्रिकोण है और अग्नि तत्व का द्योतक होता है। यंत्र के देव बुद्ध रुद्र माने गये हैं।

* चौथा चक्रअनाहत चक्र होता है। मनुष्य शरीर में यह हृदय के सामने होता है। यह द्वादश दल का है। श्री यंत्र में यह अंतर्दशार चक्र कहा जाता है। यह वायु तत्व का द्योतक माना जाता है। इसके देव ईशान रुद्र माने गये हैं।

* पांचवां चक्र विशुद्ध चक्र होता है। मनुष्य शरीर में यह कंठ में होता है। यह 16 दल का है। श्री यंत्र में यह अष्टकोण होता है। यह आकाश तत्व का द्योतक माना गया है। इसके देव भगवान शिव माने जाते हैं।
* छठा चक्र आज्ञा चक्र होताहै। मनुष्य शरीर में यह मेरुदंड  लँबिका स्थान ( दोनो भौओ के मध्य ) में माना गया है। यह 2 दलों का है। श्री यंत्र में इसकी स्थिति त्रिकोण मे मानी जाती है।
* सातवां चक्र सहस्रार चक्र  इंद्र योनि,जो शरीर में मेरुदण्ड के  ब्रहम नाडी मे माना गया है और श्री यंत्र में इसकी स्रिथति बिन्दु रूप में मानी जाती है।
* आठवा कुल  और नवम अकुल चक्र माना जाता है। श्री यंत्र में यह नूपुर के रूप में अंकित होता है। श्रीर  यंत्र के पूजन और उसे जागृत करते समय दश मुद्राएं होती हैं। इनमें संक्षोभिणी मुद्रा, द्रावणी मुद्रा, आकर्षिणी मुद्रा, वश्य उन्माद मुद्रा, महाङ्गशा मुद्रा, खेचरी मुद्रा, बीज मुद्रा, योनि मुद्रा, त्रिखंडा मुद्रा हैं। मुद्राओं के प्रयोग का एक कारण यह है कि मुद्राओं से सभी नाड़ियों में प्राण का सहज गति से प्रवेश, वीर्य की स्थिरता, कषायों और पातकों का नाश, सर्वरोगों का उपशमन्, जठराग्नि की वृद्धि, शरीर की निर्मल कांति, जरा का नाश,पंच तत्वों पर विजय एवं नाना प्रकार की योग सिद्धियों की प्राप्ति इनका मुख्य कार्य माना गया है। कुंडलिनी शक्ति का उद्बोधन, मुद्राभ्यास से ब्रह्म द्वार, या सुषुम्ना मुख से निद्रिता कुल कुंडलिनी जागृत हो कर ऊपर की ओर उठाने का कार्य मुद्राओं से होता है। इसी कारण श्री यंत्र को जागृतकरने में खेचरी मुद्रा को शामिल किया गया है। 
 दत्त ऋषि ने जमदाग्नि पुत्र परसराम जी से कहा कि यंत्र के पूजन से लाख गुणा फल अधिक होता है। इसी कारण यंत्रों को विशेष स्थान प्राप्त है। साथ ही श्री विद्या को दस महाविद्याओं में सर्वश्रेष्ठ, केवल मोक्ष प्रदान करने के कारण ही, माना गया है। इसी कारण श्री यंत्र को यंत्रराज की उपाधि दी गयी है। इस विद्या को अति गोपनीय रखा गया है और बिना पात्रता के श्री विद्या की दीक्षा नहीं दी जाती है। यही कारण है कि श्री यंत्र को जागृत करने वाले विद्वान बहुत ही कम हैं। यदि आम जन श्री यंत्र विद्या के साधक को साधक के रूप में पहचान लें, तो वह समय उसकी मृत्यु का माना जाता है, क्योंकि आम जन के जानने से उसे यश प्राप्त होता है, जो मोक्ष और सिद्धि में बाधक है। 
श्री यंत्र में ऊध्र्वमुखी 5 त्रिकोण, 5 प्राण, 5 ज्ञानेंद्रियां, 5 तन्मात्रा और 5 माया भूतों के प्रतीक हैं। मनुष्य शरीर में येअस्थि, मेदा, मांस, अवृक और त्वक् के रूप में विद्यमान हैं। 4 त्रिकोण शरीर में प्राण, शुक्र, मज्जा, जीने के द्योतक हैं और ब्रह्मांड में मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार के प्रतीक हैं। श्री यंत्र में त्रिकोण, अष्ट कोण, अंतर्दशार, बहिर्दशार और चतुरस्व, ये 5 शक्ति चक्र होते हैं और बिंदु, अष्ट दल, षोडश दल और चतुरस्त्र, ये 4 शिव चक्र होते हैं। श्री यंत्र में कुल 43 त्रिकोण होते हैं। ये त्रिकोणों के मंथन और योग से बने षट्कोण यंत्र हैं।
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Namah Shivay


Power of Manthras


Power of Manthras


Mantras are Frequencies that can Heal, Kill and Transcend..
Sanskrit is the oldest language that was based on sounds and vibrations.
Every alphabet and its pronounciation have specific meaning; like "ku" is earth, "khE" is sky etc.


OM is the first and foremost of all mantras.
OM is the sound of cosmic energy and contains all the sounds in itself. The spiritual efficacy of OM is heard, not by the ears but by the heart. It surcharges the innermost being of man with vibrations of the highest reality.
All galaxies (including ours) are rotating and the sound they make is OM.
Frequency of OM is 7.83 Hz , which is inaudible to us as the human ear with it's 2 strand DNA cannot discern sounds of frequency less than 20 hertz.
Birds, Dogs and few other animals can hear it.
OM has been adapted into other religions as AMEN, 786 ( OM symbol shown in mirror), SHALOM, OMKAR/ONKAR etc, but they do NOT work like the original OM.
While OM releases Nitric Oxide, Amen and Shalom only emit a sound.


Frequencies of various Beej Mantras


OM – 7.83 Hz
Gam – 14 Hz
Hleem – 20 Hz
Hreem – 26 Hz
Kleem – 33 Hz
Krowm – 39 Hz
Sreem – 45 Hz
These cosmic sounds were heard by 12 strand DNA maharishis in their spiritual trances which broadened their sense spectrums. However our brain can register the vibrations.
Seven Chakras and Mantras


Muladhara (मूलाधार)


Base or Root Chakra: Cervix/Perineum
Sound Note: C
Colour: Red
Element: Earth
Mantra: Lam
Frequency in Hz: 261.6, 523.3, 1046.5, 2093, 4186
Keeps you Grounded. Connects your feet to the Earth. Good if you can’t make descisions.
Swadhisthana (स्वाधिष्ठान)


Sacral Chakra: last bone in spine
Sound Note: D
Colour: Orange
Element: Water
Mantra: Vam
Frequency in Hz: 293.7, 587.3, 1174.7, 2349.3, 4698.7
Emotions, Passion, intuition and creativity.
Manipura (मणिपूर)


Solar Plexus Chakra : Navel area
Sound Note: E
Colour: Yellow
Element: Fire
Mantra: Ram
Frequency in Hz: 329.6, 659.3, 1318.5, 2637.1, 5274.1
Confidence, Assertiveness, ability to take a stand and say No.
Will Power.
Anahata (अनाहत)


Heart Chakra: Heart area
Sound Note: F
Colour: Green
Element: Wind
Mantra: Yam
Frequency in Hz: 349.2, 698.5, 1396.9, 2793.9, 5587.7
Love, Kindness, Compassion, Harmonious relationships.
Visuddha (विशुद्ध)
Throat Chakra (throat and neck area)
Sound Note: G
Colour: Blue
Element: Sky
Mantra: Ham
Frequency in Hz: 196, 392, 784, 1568, 3136
Self-Expression and Open communication.
Ajna (आज्ञा) Brow
Third Eye Chakra (pineal gland or third eye)
Sound Note: A
Colour: Indigo
Element: Body
Mantra: OM
Frequency in Hz: 110, 220, 440, 880, 1760, 3520.
Insight and visualisation. Opens up your perceptive physic ability.
Sahasrara (सहस्रार)


Crown Chakra (Top of the head; ‘Soft spot’ of a newborn)
Sound Note: B
Colour: White (combination of all the colours ) or Violet
Element: No Element
Mantra: No Sound
Frequency in Hz: 123.5, 246.9, 493.9, 987.8, 1975.5, 3951.1
Wisdom. Connecting you to your higher Self and spirituality.
Astral projection, Inter galactic travel, higher spiritual powers, timelessness, language of light etc.
Advantages of natural production of Nitric Oxide in our body :
The anuswaram (nasal sound) MMMM humming boosts the production of Nitric oxide in the body. This was known to Indians and documented more than 7000 years ago.
Nadaswaram (Shehnai) is an ancient musical instrument which produces similar nasal sound.
OM opens up quantum tunneling, where the wormholes do NOT have a restriction of speed of light. The secrets of this universe are contained in energy, frequency and vibration.
If you make the sound of OM in front of a drop of liquid, it will transform itself into a Sri Yantra which is a very specific visual form, which is symmetrical and also holographic, in that every bit of it contains all of it.


This Sri Yantra was revealed to Maharishis with 12 strand DNA and king sized pineal glands more than 8000 yrs BC.
Sanskrit Mantras have the precise golden ratio of 1.618 sound harmonics

Thank You

Namah Shivay

प्राण ऊर्जा रहस्य

प्राण ऊर्जा रहस्य 

                     
   शरीर के समस्त क्रियाकलापोंव गतिविधियों का आधार प्राणशक्ति है, जिसे जीवनी शक्ति भी कहा जाता है। यह सारे शरीर को संचालित कर स्वस्थ बनाए रखती है। योग की मान्यता है कि शरीर में अगर प्राण ऊर्जा ठीक प्रकार से प्रवाहित होती रहे, तो शरीर स्वस्थ बना रहता है और यदि प्राण ऊर्जा के प्रवाह में बाधा आ जाए, तो शरीर रोगी हो जाता है। प्राण ऊर्जा योग शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को व्यवस्थित करने का एक वैज्ञानिक तरीका है। इसमें रोग के मूल कारण पर जाकर उसका उपचार किया जाता है, जिसमें पंचकोषों को निर्मल कर शरीर में रुके मलों, विजातीय तत्वों, दूषित पदार्थों व वायु को बाहर निकाल कर शरीर की शक्ति को ब्रह्मांड में फैली ईश्वरीय शक्ति के साथ एकाकार कर जाता है।प्राण ऊर्जा योग शरीर को स्वस्थ बनाए रखने का सरल तरीका इसलिए भी है, क्योंकि इसका अभ्यास घर पर भी हो सकता है। इसके अभ्यास से शरीर के समस्त क्रियाकलापों, सभी अंग-प्रत्यंगों, नस-नाड़ियों, उत्तकों, अंत:स्त्रावी ग्रंथियों, सभी संस्थानों, यहां तक कि शरीर की सबसे छोटी इकाई - कोशिकाओं - पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा और उनमें जीवनी शक्ति का संचार होने लगेगा। इसका प्रभाव केवल हमारे शरीर पर ही नहीं पड़ता, बल्कि यह हमारी सभी कर्मेंद्रियों, ज्ञानेन्द्रियों को बलिष्ठ बनाता है, मन की नकारात्मकताको दूर कर उसमें सकारात्मकता व सृजनात्मकता के भाव जगाता है। साथ ही, साधक को प्रसन्नता व आनन्द का अनुभव प्रदान करता है। इससे बुद्धि का विकास होता है और शरीर स्वस्थ बना रहता है।


आयुर्वेद में स्वस्थ मनुष्य के लक्षणों को परिभाषित करते हुए महषिर् सुश्रुत कहते हैं कि-
समदोष: समाग्निश्च समधातु मलक्रिय:।
प्रसन्नात्मेन्दिय मन: स्वस्थ इत्यभिधीयते।।

अर्थात् जिस व्यक्ति के तीनों दोष वात, पित्त, कफ संतुलित हों, जठराग्नि तथा पांच भूताग्नि व सात धात्वाग्नि भी सम हों, शरीर को धारण करने वाली सभी सात धातुएं (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा तथा शुक्र) भी सम हों, तीनों मल (पसीना, मल, मूत्र) के बनने व शरीर से निकलने की क्रिया ठीक प्रकार से हो रही हो और उस व्यक्ति की पांचों ज्ञानेन्द्रियां (आंख, नाक, कान, जिह्वा व त्वचा) व पांचों कर्मेंद्रियां (हाथ, पैर, मुख, गुदा व उपस्थ) तथा मन व आत्मा प्रसन्न हों- ऐसे व्यक्ति को स्वस्थ कहा जाता है।स्वस्थ पुरुष के उपर्युक्त लक्षणों को प्राण ऊर्जा योग के निरंतर अभ्यास से प्राप्त कर हमेशा स्वस्थ बने रह सकते हैं। वैसे तो शरीर अपनी गति से समय के अनुसार बूढ़ा, बलहीन व रोगी होता ही है, लेकिन कई बार बेढंगी व लापरवाह जीवनशैली या किसी अन्य कारण से यह गति तेज हो जाती है, जिस कारण व्यक्ति समय से पहले ही रोगी व वृद्ध हो जाता है। प्राण ऊर्जा योग से इस गति को धीमा से धीमा किया जा सकता है, जिससे व्यक्ति लंबे समय तक युवा व स्वस्थ बना रहता है।अक्सर व्यक्ति सोचता है कि रोग होगा, तब योग करेंगे। यह धारणा गलत है। हमारा संकल्प होना चाहिए कि जिन्दगी भर हमें कोई रोग हो ही नहीं।स्वास्थ्य के लिए दो बातों का खास महत्व है- 

(1) जो स्वस्थ हैं उनकेस्वास्थ्य की रक्षा हो और 
(2) जो रोगी हैं, उनके रोग दूर हों। स्वास्थ्य की रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का धर्म है। उसकी दिनचर्या ऐसी होनी चाहिए कि शरीर में बीमारी पैदा ही न हो और रोगों की रोकथाम होती रहे। लेकिन आधुनिक जीवन शैली, विशेष रूप से कॉरपोरेट लाइफ, स्वास्थ्य को बनाए रखने में बाधा डालती है। ज्यादातर व्यक्ति अपने खानपान को नियंत्रित करने की बजाय लापरवाही बरतते हैं। जो कुछ हमारे पास है, उसके चले जाने का भय और जो नहीं है, उसे हासिल कर लेने का लालचचिन्ता, तनाव, क्रोध, भय, घबराहट और अहंकार बढ़ा रहा है, जिसका कुप्रभाव सीधे शरीर पर पड़ता है। इन सभी कारणों से व्यक्ति जल्दी रोगीहोने लगता है।अधिकतर व्यक्ति स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होकर अधिक से अधिक धन कमाने के लिए दिन भर शरीर से कार्य लेते रहते हैं। यह सिलसिला महीनों और सालों तक चलता रहता है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि धन तो इकट्ठा हो जाता है, लेकिन स्वास्थ्य चला जाता है। फिर उसी संचित धन से व्यक्ति स्वास्थ्य को प्राप्त करना चाहता है, जोकि असंभव है। इसलिए मध्यम मार्ग अपना कर शरीर से कार्य भी लें और शरीर की ओर ध्यान देकर प्राण ऊर्जा योग का अभ्यास भी करते रहें। इसके अभ्यास से गलत जीवनशैलीके कारण होने वाले रोगों की रोकथाम होने लगेगी और व्यक्ति प्रसन्न रह कर दिन भर अपने कार्य में व्यस्त रहते हुए भी स्वस्थ बना रहेगा। स्वस्थ शरीर एक ताज (मुकुट) के समान है, जिसका अहसास एक अस्वस्थ व्यक्ति ही कर सकता है। अत: प्रतिदिन पैंतीस मिनट का समय निकाल कर प्राण ऊर्जा योग का टॉनिक अवश्य लीजिए।पैंतीस मिनट का अभ्यास हैजिस शरीर से हम चौबीस घंटे काम लेते हैं, उसके लिए लगभग आधा घंटा तो निकाला ही जा सकता है। प्राण ऊर्जा योग का पूरा अभ्यास मात्र 30 मिनट का है। यहां अभ्यास क्रम के सामने प्रत्येक अभ्यास की अवधि का भीवर्णन किया गया है। यह अभ्यास यदि प्रतिदिन प्रात:काल कर लिया जाए, तो इसका प्रभाव पूरे दिन बना रहता है और व्यक्ति दिन भर हल्कापन व ताजगी अनुभव करता रहता है।इस अवधि में पूरी तरह से अपना मन अभ्यास क्रम पर लगाकर इस भाव से अभ्यास करें कि मेरा शरीर व मन पूरी तरह स्वस्थ हो रहा है और मेरे स्वास्थ्य की रक्षा हो रही है। इस तरह साधक पाएंगे कि लगभग आधे घंटे का प्रभाव शेष साढ़े तेईस घंटे पर पड़ने लगा है। यह अभ्यास अपने आप में पूर्ण अभ्यास है। इसके अतिरिक्त अन्य अभ्यास करने की विशेष आवश्यकता नहीं रह जाती।आज ज्यादातर लोग योग तो करना चाहते हैं, लेकिन वे यह नहीं समझ पाते कि उन्हें योग के हजारों अभ्यासों में से कौन से आसन या प्राणायाम करने चाहिए और कौन से नहीं। मेरे लिए कौन सा अभ्यास उपयोगी होगा और कौन सा अभ्यास कम समय में अधिक लाभ देगा- इस बारे में व्यक्ति कई बार सोचता है। वह सोचता है कि फिटनेस के लिए ऐसा कौन सा अभ्यास करे जो घर पर ही हो सके, जिसमें कोई खर्च न हो, पूरी तरह सुरक्षित हो और सुविधाजनक व रोग निदान में प्रभावी हो। इस तरह की शंकाओं के निदान के लिए ही कई सालों के अनुभव के आधार पर प्राण ऊर्जा योग तैयार किया गया है। इसके अभ्यास से शरीर सुडौल, बलिष्ठ, लचीला व निरोगी बना रहेगा।प्राण ऊर्जा योग का क्रमयह योग की नवीन और श्रेष्ठ पद्धति है। यह योग शास्त्रों में वर्णित क्रम पर आधारित है और पूर्णतया वैज्ञानिक है। इससे शीघ्रता से शरीर काशोधन होता है, उसमें लचीलापन, हल्कापन और मजबूती आती है तथा शरीर निरोगहो जाता है।योग शास्त्रों के अनुसार, योगाभ्यास में सबसे पहले षट्कर्म की क्रियाओंमें से आवश्यक क्रियाओं का अभ्यास करना चाहिए, जिससे शरीर भीतर से शुद्ध हो जाए। इसके पश्चात आसनों का अभ्यास करें। आसनों से पहले षट्कर्म का अभ्यास करने से शरीर मलरहित हो जाता है, जिससे आसनों का लाभबढ़ जाता है। इसके बाद प्राणायाम के अभ्यास का विधान बताया गया है। इसक्रम पर अमल करने से प्राणायाम का अधिकाधिक लाभ मिलने लगता है। प्राणायाम के बाद ध्यान का अभ्यास मन को शांति व एकाग्रता प्रदान करताहै। इस प्रकार योगाभ्यास का क्रम स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर होता है।इसी क्रम की वैज्ञानिकता को आधार बनाकर प्राण ऊर्जा योग का क्रम तैयारकिया गया है, जो कुछ निश्चित अभ्यासों से ही आश्चर्यजनक परिणाम देने लगता है।यहां सर्वप्रथम कपालभाति का वर्णन है। कपालभाति प्राणायाम नहीं, अपितु षट्कर्म की एक क्रिया है, जो वायु के माध्यम से शरीर की सफाई करती है। इसके पश्चात पैरों की सूक्ष्म क्रियाएं और फिर अग्निसार क्रिया वर्णितकी गई है। अग्निसार क्रिया भी षट्कर्म का ही एक अंग है। इसके पश्चात आसनों का वर्णन किया गया है। इस अध्याय में वर्णित आसन आधुनिक जीवनशैली और उसके कारण होने वाले रोगों को ध्यान में रखकर चुने गए हैं। आसनों के पश्चात चार प्राणायाम वर्णित हैं। इनमें भी सर्वप्रथम अनुलोम-विलोम प्राणायाम का वर्णन है। योग शास्त्रों के अनुसार प्राणायाम साधना में सबसे पहले शरीर की समस्त 72 हजार नाड़ियों की शुद्धि के लिए अनुलोम-विलोम प्राणायाम का विधान है। इस प्राणायाम को नाड़ीशोधन प्राणायाम भी कहा जाता है। इस प्राणायाम के बाद अन्य प्राणायाम करने से किसी तरह का कोई विपरीत प्रभाव शरीर पर नहीं पड़ता।अनुलोम-विलोम प्राणायाम के बाद उज्जायी प्राणायाम, फिर भस्त्रिका प्राणायाम का वर्णन किया गया है, क्योंकि अनुलोम-विलोम प्राणायाम से नासिका के दोनों स्वरों - बायीं ओर चन्द स्वर तथा दायीं ओर सूर्य स्वर- में प्राण का प्रवाह व्यवस्थित व संतुलित होने लगता है। योग की मान्यता है कि स्वर के गड़बड़ाने से ही रोग उत्पन्न होते हैं, अर्थात् जब एक स्वर अपने समय से अधिक समय तक चलता रहे, तो वह शरीर या मन में रोग उत्पन्न कर देता है। अनुलोम-विलोम प्राणायाम शरीर व मस्तिष्क में प्रवाहित प्राण ऊर्जा को संतुलित कर इन्हीं स्वरों को व्यवस्थित कर देता है। यदि व्यक्ति अनुलोम-विलोम के माध्यम से स्वरों को व्यवस्थित किए बिना सीधे भस्त्रिका प्राणायाम करे तो जो स्वर चल रहा होगा, उसी स्वर में प्राण का आवागमन बढ़ जाएगा। कई बार इससे भी विकार उत्पन्न होने की आशंका बढ़ जाती है। भस्त्रिका के बाद भ्रामरी प्राणायाम वणिर्त है। इसके पश्चात ध्यानात्मक शवासन का अभ्यास है। इस प्रकार यह अभ्यास क्रम पूरा हो जाता है।प्राण ऊर्जा योग की तैयारी।



1.सुबह शौचादि से निवृत्त होकर खाली पेट ढीले कपड़े पहन कर शुद्ध, हवादार वातावरण में जमीन पर दरी, कम्बल या चटाई बिछाकर अभ्यास शुरू करें।
2.गर्मी की ऋतु में छत पर, बरामदे में या लॉन में अभ्यास करना अच्छा रहता है।
3.स्थान शुद्ध और सौम्य हो। वहां बदबू, मक्खी-मच्छर, धूल-धुआं आदि नहो।
4.जहां आसन बिछाएं वह स्थान समतल हो, यानी ऊबड़-खाबड़ न हो।
5. सायंकाल अभ्यास करना हो, तो दिन के भोजन के चार से पांच घंटे बाद शौच से निवृत्त होकर कर सकते हैं।
6. महिलाएं मासिक धर्म के दौरान अभ्यास न करें। सामान्य प्रसव के दो से तीन माह बाद अभ्यास धीरे-धीरे शुरू किया जा सकता है।
7. अभ्यास मन ही मन अपने गुरु को प्रणाम कर उत्तर या पूर्व दिशा में मुंह करके करें। ऐसा करने से साधक पर ब्रह्मांडीय ऊर्जा का अनुकूल प्रभाव पड़ने लगता है।प्राण ऊर्जा योग करते समय.




1. अभ्यास करते समय मन शान्त और प्रसन्न रखें, गुस्सा, चिड़चिड़ापन या जल्दबाजी में अभ्यास न करें।
2. अभ्यास के समय चेहरे के स्नायु, नाक, कान, गले व आंखों पर तनाव नहीं आना चाहिए। केवल शरीर आवश्यकतानुसार क्रियाशील हो। सांस का आना-जाना नाक से हो।
3. अपनी आयु, शारीरिक एवं मानसिक अवस्था, लचीलापन, क्षमता, वातावरण, समय आदि बातों का ध्यान अवश्य रखें।
4. अभ्यास के दौरान पेशाब या शौच जाने की जरूरत महसूस हो, तो अभ्यास बीच में रोक कर पहले उसका त्याग करें। बाद में अभ्यास आगे बढ़ाएं।
5. बुखार, सर्दी-जुकाम, खांसी की अवस्था में अभ्यास न करें।6. अभ्यास के दौरान जल्दबाजी, जबरदस्ती व झटके आदि बिल्कुल न हों। प्रत्येक अभ्यास को धीरे-धीरे, पूरी तन्मयता से, निरंतर, दीर्घकाल तक पूरी श्रद्धा, विश्वास और उत्साह के साथ ध्यान को शरीर व सांसों पर लगाकर करें।
7. अभ्यास के समय आंखें बंद कर, मन को शरीर पर लगाकर प्रत्येक अभ्यासइस भाव से करें कि योग शक्ति मेरे रोगों का नाश कर मुझे स्वस्थ बना रही है। मन में स्वस्थ होते जाने का भाव बनाए रखें, क्योंकि रोग की भावना रोग को बढ़ाती है और स्वास्थ्य की भावना स्वास्थ्य को बढ़ाती है।प्राण ऊर्जा योग करने के बाद



1. यदि स्नान करना हो तो अभ्यास के आधा घंटे बाद स्नान करें। 15-20 मिनट बाद पानी मुंह में रोक कर पी सकते हैं। भोजन आधा घंटा बाद कर सकते हैं।
2. अभ्यास के बाद जोर से बोलना व गुस्सा नहीं करना चाहिए। मन की शांति व प्रसन्नता को देर तक अनुभव करते रहें।
3. अभ्यास के पश्चात आंखें बंद करके कुछ क्षण शान्त होकर बैठें और अपने गुरु या इष्ट देवता का स्मरण करें।
4. नीचे बिछाए हुए आसन-चादर, चटाई इत्यादि को तह करके रखें और किसी अन्य कार्य के लिए प्रयोग में न लाएं।
5. अभ्यास का समय एवं स्थान निश्चित हो तो अधिक लाभ प्राप्त होता है।घर से बाहर होने पर भी अभ्यास जारी रखें।
6. आवश्यकता होने पर यह दिन में दो बार किया जा सकता है।प्राण ऊर्जा योग का प्रारंभ ओम के उच्चारण से करें। इसके लिए किसी ध्यानात्मक आसन में पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके बैठ जाएं। कमर व गर्दन को सीधा रखकर आंखें बंद कर लें। दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें। चेहरे पर प्रसन्नता का भाव रखते हुए अपना ध्यान सांसों पर ले आएं और लंबा गहरा श्वास भरें। फिर श्वास निकालते हुए ओम की ध्वनि का उच्चारण करें। इस प्रकार यह उच्चारण तीन बार कर लें। इसके पश्चात अपना ध्यान सांसों पर लाकर बैठे रहें और कपालभाति का अभ्यास प्रारम्भ करें।


जीवन के मायने

इस मैसेज को गौर से दो बार पढे!!!!
जिस दिन हमारी मोत होती है, हमारा पैसा बैंक में ही रहा जाता है।

जब हम जिंदा होते हैं तो हमें लगता है कि हमारे पास खच॔ करने को पया॔प्त धन नहीं है।

जब हम चले जाते है तब भी बहुत सा धन बिना खच॔ हुये बच जाता है।

एक चीनी बादशाह की मोत हुई। वो अपनी विधवा के लिये बैंक में 1.9 मिलियन डालर छोड़ कर गया। विधवा ने जवान नोकर से शादी कर ली। उस नोकर ने कहा -
"मैं हमेशा सोचता था कि मैं अपने मालिक के लिये काम करता हूँ अब समझ आया कि वो हमेशा मेरे लिये काम करता था।"

सीख?
ज्यादा जरूरी है कि अधिक धन अज॔न कि बजाय अधिक जिया जाय।
• अच्छे व स्वस्थ शरीर के लिये प्रयास करिये।
• मँहगे फ़ोन के 70% फंक्शन अनोपयोगी रहते है।
• मँहगी कार की 70% गति का उपयोग नहीं हो पाता।
• आलीशान मकानो का 70% हिस्सा खाली रहता है।
• पूरी अलमारी के 70% कपड़े पड़े रहते हैं।
• पुरी जिंदगी की कमाई का 70% दूसरो के उपयोग के लिये छूट जाता है।
• 70% गुणो का उपयोग नहीं हो पाता

तो 30% का पूण॔ उपयोग कैसे हो
• स्वस्थ होने पर भी निरंतर चैक अप करायें।
• प्यासे न होने पर भी अधिक पानी पियें।
• जब भी संभव हो, अपना अहं त्यागें ।
• शक्तिशाली होने पर भी सरल रहेँ।
• धनी न होने पर भी परिपूण॔ रहें।

बेहतर जीवन जीयें !!!
काबू में रखें - प्रार्थना के वक़्त अपने दिल को,
काबू में रखें - खाना खाते समय पेट को,
काबू में रखें - किसी के घर जाएं तो आँखों को,
काबू में रखें - महफ़िल मे जाएं तो ज़बान को,
काबू में रखें - पराया धन देखें तो लालच को,

भूल जाएं - अपनी नेकियों को,
भूल जाएं - दूसरों की गलतियों को,
भूल जाएं - अतीत के कड़वे संस्मरणों को,

छोड दें - दूसरों को नीचा दिखाना,
छोड दें - दूसरों की सफलता से जलना,
छोड दें - दूसरों के धन की चाह रखना,
छोड दें - दूसरों की चुगली करना,
छोड दें - दूसरों की सफलता पर दुखी होना,

यदि आपके फ्रिज में खाना है, बदन पर कपड़े हैं, घर के ऊपर छत है और सोने के लिये जगह है,
तो दुनिया के 75% लोगों से ज्यादा धनी हैं

यदि आपके पर्स में पैसे हैं और आप कुछ बदलाव के लिये कही भी जा सकते हैं जहाँ आप जाना चाहते हैं
तो आप दुनिया के 18% धनी लोगों में शामिल हैं

यदि आप आज पूर्णतः स्वस्थ होकर जीवित हैं
तो आप उन लाखों लोगों की तुलना में खुशनसीब हैं जो इस हफ्ते जी भी न पायें

जीवन के मायने दुःखों की शिकायत करने में नहीं हैं
बल्कि हमारे निर्माता को धन्यवाद करने के अन्य हजारों कारणों में है!!!

यदि आप मैसेज को वाकइ पढ़ सकते हैं और समझ सकते हैं
तो आप उन करोड़ों लोगों में खुशनसीब हैं जो देख नहीं सकते और पढ़ नहीं सकते

अगर आपको यह सन्देश बार बार मिले तो परेशान होनेकी
बजाय आपको खुश होना चाहिए !

धन्यवाद...

मैंने भेज दिया
अब आपकी बाऱी है ।

शिव कृपा अनंत


शिव कृपा अनंत 
शिव  ही मीत है
शिव ही प्रीत है


शिव ही जीवन है 
शिव ही प्रकाश है
शिव ही सांस है
शिव ही आस है


शिव ही प्यास हैै
शिव ही ज्ञान है


शिव ही ससांर है
शिव ही प्यार है


शिव ही गीत है
शिव ही संगीत है


शिव ही लहर है
शिव ही भीतर  है


शिव ही बाहर है
शिव ही बहार  है


शिव ही प्राण है
शिव ही जान है


शिव ही संबल है
शिव ही आलंबन है


शिव ही दर्पण है
शिव ही धर्म  है


शिव ही कर्म है
शिव ही मर्म  है


शिव ही नर्म है
शिव ही प्राण है

शिव ही जहान है
शिव ही समाधान है
शिव ही आराधना है

 शिव ही उपासना है


शिव ही सगुन है
 शिव ही निर्गुण है
शिव ही आदि है
शिव ही अन्त  ह


शिव ही अनन्त है
शिव ही विलय है


शिव ही प्रलय है
शिव ही आधि है


शिव ही व्याधि है
शिव ही समाधि है


शिव ही जप है
शिव ही तप है


शिव ही ताप है
शिव ही यज्ञः है


शिव ही हवन है
शिव ही समिध है


शिव ही समिधा है
शिव ही आरती है


शिव ही भजन है
शिव ही भोजन है


शिव ही साज है
शिव ही वाद्य है


शिव ही वन्दना है
शिव ही आलाप है


शिव ही प्यारा है
शिव ही न्यारा है


शिव ही दुलारा हैै
शिव ही मनन है


शिव ही चिंतन है
शिव ही वंदन है


शिव ही चन्दन है
शिव ही अभिनन्दन है


शिव ही नंदन है
शिव ही गरिमा है


शिव ही महिमा है
शिव ही चेतना है
शिव ही भावना है


 शिव ही गहना है


शिव ही पाहुना है
शिव ही अमृत है
शिव ही खुशबू है
शिव ही मंजिल है


शिव ही सकल जहाँ है
शिव समष्टि है


शिव ही व्यष्टि है
शिव ही सृष्टी है


शिव ही सपना है
शिव ही अपना है


           

 "पानी" के बिना
"नदी" बेकार है
"अतिथि" के बिना
"आँगन" बेकार है
"प्रेम" ना हौ तो 
"सगेसम्बन्धी"बेकार है,


और
जीवन में "शिव भक्ति " ना हौ तो
"जीवन" बेकार है।
इसलिये
जीवन में "शिव भक्ति " ज़रूरी है

जीवन पर आधारित पंग्तिया


जीवन पर आधारित पंग्तिया 


"जीवन ऐसा हो जो-
संबंधों की कदर करे,
और संबंध ऐसे हो जो-
याद करने को मजबूर कर दे..!!


"दुनियां के रैन बसेरे में..


पता नही कितने दिन रहना है,

"जीत लो सबके दिलों को..
बस यही जीवन का गहना है..!!"




गुरु कृपा प्राप्ति का तरीका



गुरु कृपा प्राप्ति का तरीका 


“गुरु कृपा चार प्रकार से होती है ।”


  •  स्मरण से 
  •  दृष्टि से 
  •  शब्द से 
  •  स्पर्श से


1)   जैसे कछुवी रेत के भीतर अंडा देती है पर खुद पानी के भीतर रहती हुई उस अंडे को याद करती रहती है तो उसके स्मरण से अंडा पक जाता है ।
ऐसे ही गुरु की याद करने मात्र से शिष्य को ज्ञान हो जाता है ।
यह है स्मरण दीक्षा।


2)  दूसरा जैसे मछली जल में अपने अंडे को थोड़ी थोड़ी देर में देखती रहती है तो देखने मात्र से अंडा पक जाता है ।
ऐसे ही गुरु की कृपा दृष्टि से शिष्य को ज्ञान हो जाता है ।
यह दृष्टि दीक्षा है



3)  तीसरा जैसे कुररी पृथ्वी पर अंडा देती है ,
और आकाश में शब्द करती हुई घूमती है तो उसके शब्द से अंडा पक जाता है । ऐसे ही गुरु अपने शब्दों से शिष्य को ज्ञान करा देता है ।
यह शब्द दीक्षा है।



4)  चौथा जैसे मयूरी अपने अंडे पर बैठी रहती है तो उसके स्पर्श से अंडा पक जाता है । ऐसे ही गुरु के हाथ के स्पर्श से शिष्य को ज्ञान हो जाता है ।
यह स्पर्श दीक्षा है।

       


 गुरू कृपा ही केवलम्

नमः शिवाय 


शिव -शक्ति रहस्य

शिव -शक्ति रहस्य

  "अर्द्धनारीनरवपु: प्रचंडोSति शरीरवान ।विभजात्मानभिट्युक्तवा तं ब्रह्मान्तर्द धेतत:।।"

      अर्थात सृष्टि के आरंभ में रुद्र आधे शरीर से पुरुष और आधे शरीर से नारी हुए यह जानकर ब्रह्मा संतुष्ट हुए और उसका विभाजन की प्रेरणा दी ताकि सृष्टि का संचालन किया जा सके। शास्त्रों ने पुरुष को तभी पूर्ण माना है जब उससे नारी संयुक्त हो जाती है। नारी के अभाव में वहअपूर्ण,अधूरा रहता है ।भविष्य पुराण के सातवें अध्याय में लिखा है 

"पुमाबद्ध पुमास्तावद्यावाद्भार्या" पुरुष तब तक पूर्णता को प्राप्त नहीं करता जब तक कि उसके आधे अंग को आकर नारी नहीं भर देती। शक्ति शिव की अभिभाज्य अंग हैं। शिव नर के द्योतक हैं तो शक्ति नारी की। वे एक दुसरे के पुरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं।वो संकल्प मात्र करते हैं शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं। शिव सागर के जल के सामान हैं तथा शक्ति लहर के सामान हैं। लहर है जल का वेग। जल के बिना लहर का क्या अस्तित्व है? और वेग बिना सागर अथवा उसके जल का? यही है शिव एवं उनकी शक्ति का संबंध। 



अगर शिव से "ई" की मात्रा हटा दी जाए, तो वह महज शव रह जाता है। शक्ति जब शांत होती है, तब वह शिव कहलाती है। ये दोनों तत्व ब्रह्मांड का आधार हैं।

नमः शिवाय