शिव -शक्ति रहस्य

शिव -शक्ति रहस्य

  "अर्द्धनारीनरवपु: प्रचंडोSति शरीरवान ।विभजात्मानभिट्युक्तवा तं ब्रह्मान्तर्द धेतत:।।"

      अर्थात सृष्टि के आरंभ में रुद्र आधे शरीर से पुरुष और आधे शरीर से नारी हुए यह जानकर ब्रह्मा संतुष्ट हुए और उसका विभाजन की प्रेरणा दी ताकि सृष्टि का संचालन किया जा सके। शास्त्रों ने पुरुष को तभी पूर्ण माना है जब उससे नारी संयुक्त हो जाती है। नारी के अभाव में वहअपूर्ण,अधूरा रहता है ।भविष्य पुराण के सातवें अध्याय में लिखा है 

"पुमाबद्ध पुमास्तावद्यावाद्भार्या" पुरुष तब तक पूर्णता को प्राप्त नहीं करता जब तक कि उसके आधे अंग को आकर नारी नहीं भर देती। शक्ति शिव की अभिभाज्य अंग हैं। शिव नर के द्योतक हैं तो शक्ति नारी की। वे एक दुसरे के पुरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं।वो संकल्प मात्र करते हैं शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं। शिव सागर के जल के सामान हैं तथा शक्ति लहर के सामान हैं। लहर है जल का वेग। जल के बिना लहर का क्या अस्तित्व है? और वेग बिना सागर अथवा उसके जल का? यही है शिव एवं उनकी शक्ति का संबंध। 



अगर शिव से "ई" की मात्रा हटा दी जाए, तो वह महज शव रह जाता है। शक्ति जब शांत होती है, तब वह शिव कहलाती है। ये दोनों तत्व ब्रह्मांड का आधार हैं।

नमः शिवाय 




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