प्राण ऊर्जा रहस्य

प्राण ऊर्जा रहस्य 

                     
   शरीर के समस्त क्रियाकलापोंव गतिविधियों का आधार प्राणशक्ति है, जिसे जीवनी शक्ति भी कहा जाता है। यह सारे शरीर को संचालित कर स्वस्थ बनाए रखती है। योग की मान्यता है कि शरीर में अगर प्राण ऊर्जा ठीक प्रकार से प्रवाहित होती रहे, तो शरीर स्वस्थ बना रहता है और यदि प्राण ऊर्जा के प्रवाह में बाधा आ जाए, तो शरीर रोगी हो जाता है। प्राण ऊर्जा योग शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को व्यवस्थित करने का एक वैज्ञानिक तरीका है। इसमें रोग के मूल कारण पर जाकर उसका उपचार किया जाता है, जिसमें पंचकोषों को निर्मल कर शरीर में रुके मलों, विजातीय तत्वों, दूषित पदार्थों व वायु को बाहर निकाल कर शरीर की शक्ति को ब्रह्मांड में फैली ईश्वरीय शक्ति के साथ एकाकार कर जाता है।प्राण ऊर्जा योग शरीर को स्वस्थ बनाए रखने का सरल तरीका इसलिए भी है, क्योंकि इसका अभ्यास घर पर भी हो सकता है। इसके अभ्यास से शरीर के समस्त क्रियाकलापों, सभी अंग-प्रत्यंगों, नस-नाड़ियों, उत्तकों, अंत:स्त्रावी ग्रंथियों, सभी संस्थानों, यहां तक कि शरीर की सबसे छोटी इकाई - कोशिकाओं - पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा और उनमें जीवनी शक्ति का संचार होने लगेगा। इसका प्रभाव केवल हमारे शरीर पर ही नहीं पड़ता, बल्कि यह हमारी सभी कर्मेंद्रियों, ज्ञानेन्द्रियों को बलिष्ठ बनाता है, मन की नकारात्मकताको दूर कर उसमें सकारात्मकता व सृजनात्मकता के भाव जगाता है। साथ ही, साधक को प्रसन्नता व आनन्द का अनुभव प्रदान करता है। इससे बुद्धि का विकास होता है और शरीर स्वस्थ बना रहता है।


आयुर्वेद में स्वस्थ मनुष्य के लक्षणों को परिभाषित करते हुए महषिर् सुश्रुत कहते हैं कि-
समदोष: समाग्निश्च समधातु मलक्रिय:।
प्रसन्नात्मेन्दिय मन: स्वस्थ इत्यभिधीयते।।

अर्थात् जिस व्यक्ति के तीनों दोष वात, पित्त, कफ संतुलित हों, जठराग्नि तथा पांच भूताग्नि व सात धात्वाग्नि भी सम हों, शरीर को धारण करने वाली सभी सात धातुएं (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा तथा शुक्र) भी सम हों, तीनों मल (पसीना, मल, मूत्र) के बनने व शरीर से निकलने की क्रिया ठीक प्रकार से हो रही हो और उस व्यक्ति की पांचों ज्ञानेन्द्रियां (आंख, नाक, कान, जिह्वा व त्वचा) व पांचों कर्मेंद्रियां (हाथ, पैर, मुख, गुदा व उपस्थ) तथा मन व आत्मा प्रसन्न हों- ऐसे व्यक्ति को स्वस्थ कहा जाता है।स्वस्थ पुरुष के उपर्युक्त लक्षणों को प्राण ऊर्जा योग के निरंतर अभ्यास से प्राप्त कर हमेशा स्वस्थ बने रह सकते हैं। वैसे तो शरीर अपनी गति से समय के अनुसार बूढ़ा, बलहीन व रोगी होता ही है, लेकिन कई बार बेढंगी व लापरवाह जीवनशैली या किसी अन्य कारण से यह गति तेज हो जाती है, जिस कारण व्यक्ति समय से पहले ही रोगी व वृद्ध हो जाता है। प्राण ऊर्जा योग से इस गति को धीमा से धीमा किया जा सकता है, जिससे व्यक्ति लंबे समय तक युवा व स्वस्थ बना रहता है।अक्सर व्यक्ति सोचता है कि रोग होगा, तब योग करेंगे। यह धारणा गलत है। हमारा संकल्प होना चाहिए कि जिन्दगी भर हमें कोई रोग हो ही नहीं।स्वास्थ्य के लिए दो बातों का खास महत्व है- 

(1) जो स्वस्थ हैं उनकेस्वास्थ्य की रक्षा हो और 
(2) जो रोगी हैं, उनके रोग दूर हों। स्वास्थ्य की रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का धर्म है। उसकी दिनचर्या ऐसी होनी चाहिए कि शरीर में बीमारी पैदा ही न हो और रोगों की रोकथाम होती रहे। लेकिन आधुनिक जीवन शैली, विशेष रूप से कॉरपोरेट लाइफ, स्वास्थ्य को बनाए रखने में बाधा डालती है। ज्यादातर व्यक्ति अपने खानपान को नियंत्रित करने की बजाय लापरवाही बरतते हैं। जो कुछ हमारे पास है, उसके चले जाने का भय और जो नहीं है, उसे हासिल कर लेने का लालचचिन्ता, तनाव, क्रोध, भय, घबराहट और अहंकार बढ़ा रहा है, जिसका कुप्रभाव सीधे शरीर पर पड़ता है। इन सभी कारणों से व्यक्ति जल्दी रोगीहोने लगता है।अधिकतर व्यक्ति स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होकर अधिक से अधिक धन कमाने के लिए दिन भर शरीर से कार्य लेते रहते हैं। यह सिलसिला महीनों और सालों तक चलता रहता है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि धन तो इकट्ठा हो जाता है, लेकिन स्वास्थ्य चला जाता है। फिर उसी संचित धन से व्यक्ति स्वास्थ्य को प्राप्त करना चाहता है, जोकि असंभव है। इसलिए मध्यम मार्ग अपना कर शरीर से कार्य भी लें और शरीर की ओर ध्यान देकर प्राण ऊर्जा योग का अभ्यास भी करते रहें। इसके अभ्यास से गलत जीवनशैलीके कारण होने वाले रोगों की रोकथाम होने लगेगी और व्यक्ति प्रसन्न रह कर दिन भर अपने कार्य में व्यस्त रहते हुए भी स्वस्थ बना रहेगा। स्वस्थ शरीर एक ताज (मुकुट) के समान है, जिसका अहसास एक अस्वस्थ व्यक्ति ही कर सकता है। अत: प्रतिदिन पैंतीस मिनट का समय निकाल कर प्राण ऊर्जा योग का टॉनिक अवश्य लीजिए।पैंतीस मिनट का अभ्यास हैजिस शरीर से हम चौबीस घंटे काम लेते हैं, उसके लिए लगभग आधा घंटा तो निकाला ही जा सकता है। प्राण ऊर्जा योग का पूरा अभ्यास मात्र 30 मिनट का है। यहां अभ्यास क्रम के सामने प्रत्येक अभ्यास की अवधि का भीवर्णन किया गया है। यह अभ्यास यदि प्रतिदिन प्रात:काल कर लिया जाए, तो इसका प्रभाव पूरे दिन बना रहता है और व्यक्ति दिन भर हल्कापन व ताजगी अनुभव करता रहता है।इस अवधि में पूरी तरह से अपना मन अभ्यास क्रम पर लगाकर इस भाव से अभ्यास करें कि मेरा शरीर व मन पूरी तरह स्वस्थ हो रहा है और मेरे स्वास्थ्य की रक्षा हो रही है। इस तरह साधक पाएंगे कि लगभग आधे घंटे का प्रभाव शेष साढ़े तेईस घंटे पर पड़ने लगा है। यह अभ्यास अपने आप में पूर्ण अभ्यास है। इसके अतिरिक्त अन्य अभ्यास करने की विशेष आवश्यकता नहीं रह जाती।आज ज्यादातर लोग योग तो करना चाहते हैं, लेकिन वे यह नहीं समझ पाते कि उन्हें योग के हजारों अभ्यासों में से कौन से आसन या प्राणायाम करने चाहिए और कौन से नहीं। मेरे लिए कौन सा अभ्यास उपयोगी होगा और कौन सा अभ्यास कम समय में अधिक लाभ देगा- इस बारे में व्यक्ति कई बार सोचता है। वह सोचता है कि फिटनेस के लिए ऐसा कौन सा अभ्यास करे जो घर पर ही हो सके, जिसमें कोई खर्च न हो, पूरी तरह सुरक्षित हो और सुविधाजनक व रोग निदान में प्रभावी हो। इस तरह की शंकाओं के निदान के लिए ही कई सालों के अनुभव के आधार पर प्राण ऊर्जा योग तैयार किया गया है। इसके अभ्यास से शरीर सुडौल, बलिष्ठ, लचीला व निरोगी बना रहेगा।प्राण ऊर्जा योग का क्रमयह योग की नवीन और श्रेष्ठ पद्धति है। यह योग शास्त्रों में वर्णित क्रम पर आधारित है और पूर्णतया वैज्ञानिक है। इससे शीघ्रता से शरीर काशोधन होता है, उसमें लचीलापन, हल्कापन और मजबूती आती है तथा शरीर निरोगहो जाता है।योग शास्त्रों के अनुसार, योगाभ्यास में सबसे पहले षट्कर्म की क्रियाओंमें से आवश्यक क्रियाओं का अभ्यास करना चाहिए, जिससे शरीर भीतर से शुद्ध हो जाए। इसके पश्चात आसनों का अभ्यास करें। आसनों से पहले षट्कर्म का अभ्यास करने से शरीर मलरहित हो जाता है, जिससे आसनों का लाभबढ़ जाता है। इसके बाद प्राणायाम के अभ्यास का विधान बताया गया है। इसक्रम पर अमल करने से प्राणायाम का अधिकाधिक लाभ मिलने लगता है। प्राणायाम के बाद ध्यान का अभ्यास मन को शांति व एकाग्रता प्रदान करताहै। इस प्रकार योगाभ्यास का क्रम स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर होता है।इसी क्रम की वैज्ञानिकता को आधार बनाकर प्राण ऊर्जा योग का क्रम तैयारकिया गया है, जो कुछ निश्चित अभ्यासों से ही आश्चर्यजनक परिणाम देने लगता है।यहां सर्वप्रथम कपालभाति का वर्णन है। कपालभाति प्राणायाम नहीं, अपितु षट्कर्म की एक क्रिया है, जो वायु के माध्यम से शरीर की सफाई करती है। इसके पश्चात पैरों की सूक्ष्म क्रियाएं और फिर अग्निसार क्रिया वर्णितकी गई है। अग्निसार क्रिया भी षट्कर्म का ही एक अंग है। इसके पश्चात आसनों का वर्णन किया गया है। इस अध्याय में वर्णित आसन आधुनिक जीवनशैली और उसके कारण होने वाले रोगों को ध्यान में रखकर चुने गए हैं। आसनों के पश्चात चार प्राणायाम वर्णित हैं। इनमें भी सर्वप्रथम अनुलोम-विलोम प्राणायाम का वर्णन है। योग शास्त्रों के अनुसार प्राणायाम साधना में सबसे पहले शरीर की समस्त 72 हजार नाड़ियों की शुद्धि के लिए अनुलोम-विलोम प्राणायाम का विधान है। इस प्राणायाम को नाड़ीशोधन प्राणायाम भी कहा जाता है। इस प्राणायाम के बाद अन्य प्राणायाम करने से किसी तरह का कोई विपरीत प्रभाव शरीर पर नहीं पड़ता।अनुलोम-विलोम प्राणायाम के बाद उज्जायी प्राणायाम, फिर भस्त्रिका प्राणायाम का वर्णन किया गया है, क्योंकि अनुलोम-विलोम प्राणायाम से नासिका के दोनों स्वरों - बायीं ओर चन्द स्वर तथा दायीं ओर सूर्य स्वर- में प्राण का प्रवाह व्यवस्थित व संतुलित होने लगता है। योग की मान्यता है कि स्वर के गड़बड़ाने से ही रोग उत्पन्न होते हैं, अर्थात् जब एक स्वर अपने समय से अधिक समय तक चलता रहे, तो वह शरीर या मन में रोग उत्पन्न कर देता है। अनुलोम-विलोम प्राणायाम शरीर व मस्तिष्क में प्रवाहित प्राण ऊर्जा को संतुलित कर इन्हीं स्वरों को व्यवस्थित कर देता है। यदि व्यक्ति अनुलोम-विलोम के माध्यम से स्वरों को व्यवस्थित किए बिना सीधे भस्त्रिका प्राणायाम करे तो जो स्वर चल रहा होगा, उसी स्वर में प्राण का आवागमन बढ़ जाएगा। कई बार इससे भी विकार उत्पन्न होने की आशंका बढ़ जाती है। भस्त्रिका के बाद भ्रामरी प्राणायाम वणिर्त है। इसके पश्चात ध्यानात्मक शवासन का अभ्यास है। इस प्रकार यह अभ्यास क्रम पूरा हो जाता है।प्राण ऊर्जा योग की तैयारी।



1.सुबह शौचादि से निवृत्त होकर खाली पेट ढीले कपड़े पहन कर शुद्ध, हवादार वातावरण में जमीन पर दरी, कम्बल या चटाई बिछाकर अभ्यास शुरू करें।
2.गर्मी की ऋतु में छत पर, बरामदे में या लॉन में अभ्यास करना अच्छा रहता है।
3.स्थान शुद्ध और सौम्य हो। वहां बदबू, मक्खी-मच्छर, धूल-धुआं आदि नहो।
4.जहां आसन बिछाएं वह स्थान समतल हो, यानी ऊबड़-खाबड़ न हो।
5. सायंकाल अभ्यास करना हो, तो दिन के भोजन के चार से पांच घंटे बाद शौच से निवृत्त होकर कर सकते हैं।
6. महिलाएं मासिक धर्म के दौरान अभ्यास न करें। सामान्य प्रसव के दो से तीन माह बाद अभ्यास धीरे-धीरे शुरू किया जा सकता है।
7. अभ्यास मन ही मन अपने गुरु को प्रणाम कर उत्तर या पूर्व दिशा में मुंह करके करें। ऐसा करने से साधक पर ब्रह्मांडीय ऊर्जा का अनुकूल प्रभाव पड़ने लगता है।प्राण ऊर्जा योग करते समय.




1. अभ्यास करते समय मन शान्त और प्रसन्न रखें, गुस्सा, चिड़चिड़ापन या जल्दबाजी में अभ्यास न करें।
2. अभ्यास के समय चेहरे के स्नायु, नाक, कान, गले व आंखों पर तनाव नहीं आना चाहिए। केवल शरीर आवश्यकतानुसार क्रियाशील हो। सांस का आना-जाना नाक से हो।
3. अपनी आयु, शारीरिक एवं मानसिक अवस्था, लचीलापन, क्षमता, वातावरण, समय आदि बातों का ध्यान अवश्य रखें।
4. अभ्यास के दौरान पेशाब या शौच जाने की जरूरत महसूस हो, तो अभ्यास बीच में रोक कर पहले उसका त्याग करें। बाद में अभ्यास आगे बढ़ाएं।
5. बुखार, सर्दी-जुकाम, खांसी की अवस्था में अभ्यास न करें।6. अभ्यास के दौरान जल्दबाजी, जबरदस्ती व झटके आदि बिल्कुल न हों। प्रत्येक अभ्यास को धीरे-धीरे, पूरी तन्मयता से, निरंतर, दीर्घकाल तक पूरी श्रद्धा, विश्वास और उत्साह के साथ ध्यान को शरीर व सांसों पर लगाकर करें।
7. अभ्यास के समय आंखें बंद कर, मन को शरीर पर लगाकर प्रत्येक अभ्यासइस भाव से करें कि योग शक्ति मेरे रोगों का नाश कर मुझे स्वस्थ बना रही है। मन में स्वस्थ होते जाने का भाव बनाए रखें, क्योंकि रोग की भावना रोग को बढ़ाती है और स्वास्थ्य की भावना स्वास्थ्य को बढ़ाती है।प्राण ऊर्जा योग करने के बाद



1. यदि स्नान करना हो तो अभ्यास के आधा घंटे बाद स्नान करें। 15-20 मिनट बाद पानी मुंह में रोक कर पी सकते हैं। भोजन आधा घंटा बाद कर सकते हैं।
2. अभ्यास के बाद जोर से बोलना व गुस्सा नहीं करना चाहिए। मन की शांति व प्रसन्नता को देर तक अनुभव करते रहें।
3. अभ्यास के पश्चात आंखें बंद करके कुछ क्षण शान्त होकर बैठें और अपने गुरु या इष्ट देवता का स्मरण करें।
4. नीचे बिछाए हुए आसन-चादर, चटाई इत्यादि को तह करके रखें और किसी अन्य कार्य के लिए प्रयोग में न लाएं।
5. अभ्यास का समय एवं स्थान निश्चित हो तो अधिक लाभ प्राप्त होता है।घर से बाहर होने पर भी अभ्यास जारी रखें।
6. आवश्यकता होने पर यह दिन में दो बार किया जा सकता है।प्राण ऊर्जा योग का प्रारंभ ओम के उच्चारण से करें। इसके लिए किसी ध्यानात्मक आसन में पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके बैठ जाएं। कमर व गर्दन को सीधा रखकर आंखें बंद कर लें। दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें। चेहरे पर प्रसन्नता का भाव रखते हुए अपना ध्यान सांसों पर ले आएं और लंबा गहरा श्वास भरें। फिर श्वास निकालते हुए ओम की ध्वनि का उच्चारण करें। इस प्रकार यह उच्चारण तीन बार कर लें। इसके पश्चात अपना ध्यान सांसों पर लाकर बैठे रहें और कपालभाति का अभ्यास प्रारम्भ करें।


जीवन के मायने

इस मैसेज को गौर से दो बार पढे!!!!
जिस दिन हमारी मोत होती है, हमारा पैसा बैंक में ही रहा जाता है।

जब हम जिंदा होते हैं तो हमें लगता है कि हमारे पास खच॔ करने को पया॔प्त धन नहीं है।

जब हम चले जाते है तब भी बहुत सा धन बिना खच॔ हुये बच जाता है।

एक चीनी बादशाह की मोत हुई। वो अपनी विधवा के लिये बैंक में 1.9 मिलियन डालर छोड़ कर गया। विधवा ने जवान नोकर से शादी कर ली। उस नोकर ने कहा -
"मैं हमेशा सोचता था कि मैं अपने मालिक के लिये काम करता हूँ अब समझ आया कि वो हमेशा मेरे लिये काम करता था।"

सीख?
ज्यादा जरूरी है कि अधिक धन अज॔न कि बजाय अधिक जिया जाय।
• अच्छे व स्वस्थ शरीर के लिये प्रयास करिये।
• मँहगे फ़ोन के 70% फंक्शन अनोपयोगी रहते है।
• मँहगी कार की 70% गति का उपयोग नहीं हो पाता।
• आलीशान मकानो का 70% हिस्सा खाली रहता है।
• पूरी अलमारी के 70% कपड़े पड़े रहते हैं।
• पुरी जिंदगी की कमाई का 70% दूसरो के उपयोग के लिये छूट जाता है।
• 70% गुणो का उपयोग नहीं हो पाता

तो 30% का पूण॔ उपयोग कैसे हो
• स्वस्थ होने पर भी निरंतर चैक अप करायें।
• प्यासे न होने पर भी अधिक पानी पियें।
• जब भी संभव हो, अपना अहं त्यागें ।
• शक्तिशाली होने पर भी सरल रहेँ।
• धनी न होने पर भी परिपूण॔ रहें।

बेहतर जीवन जीयें !!!
काबू में रखें - प्रार्थना के वक़्त अपने दिल को,
काबू में रखें - खाना खाते समय पेट को,
काबू में रखें - किसी के घर जाएं तो आँखों को,
काबू में रखें - महफ़िल मे जाएं तो ज़बान को,
काबू में रखें - पराया धन देखें तो लालच को,

भूल जाएं - अपनी नेकियों को,
भूल जाएं - दूसरों की गलतियों को,
भूल जाएं - अतीत के कड़वे संस्मरणों को,

छोड दें - दूसरों को नीचा दिखाना,
छोड दें - दूसरों की सफलता से जलना,
छोड दें - दूसरों के धन की चाह रखना,
छोड दें - दूसरों की चुगली करना,
छोड दें - दूसरों की सफलता पर दुखी होना,

यदि आपके फ्रिज में खाना है, बदन पर कपड़े हैं, घर के ऊपर छत है और सोने के लिये जगह है,
तो दुनिया के 75% लोगों से ज्यादा धनी हैं

यदि आपके पर्स में पैसे हैं और आप कुछ बदलाव के लिये कही भी जा सकते हैं जहाँ आप जाना चाहते हैं
तो आप दुनिया के 18% धनी लोगों में शामिल हैं

यदि आप आज पूर्णतः स्वस्थ होकर जीवित हैं
तो आप उन लाखों लोगों की तुलना में खुशनसीब हैं जो इस हफ्ते जी भी न पायें

जीवन के मायने दुःखों की शिकायत करने में नहीं हैं
बल्कि हमारे निर्माता को धन्यवाद करने के अन्य हजारों कारणों में है!!!

यदि आप मैसेज को वाकइ पढ़ सकते हैं और समझ सकते हैं
तो आप उन करोड़ों लोगों में खुशनसीब हैं जो देख नहीं सकते और पढ़ नहीं सकते

अगर आपको यह सन्देश बार बार मिले तो परेशान होनेकी
बजाय आपको खुश होना चाहिए !

धन्यवाद...

मैंने भेज दिया
अब आपकी बाऱी है ।

शिव कृपा अनंत


शिव कृपा अनंत 
शिव  ही मीत है
शिव ही प्रीत है


शिव ही जीवन है 
शिव ही प्रकाश है
शिव ही सांस है
शिव ही आस है


शिव ही प्यास हैै
शिव ही ज्ञान है


शिव ही ससांर है
शिव ही प्यार है


शिव ही गीत है
शिव ही संगीत है


शिव ही लहर है
शिव ही भीतर  है


शिव ही बाहर है
शिव ही बहार  है


शिव ही प्राण है
शिव ही जान है


शिव ही संबल है
शिव ही आलंबन है


शिव ही दर्पण है
शिव ही धर्म  है


शिव ही कर्म है
शिव ही मर्म  है


शिव ही नर्म है
शिव ही प्राण है

शिव ही जहान है
शिव ही समाधान है
शिव ही आराधना है

 शिव ही उपासना है


शिव ही सगुन है
 शिव ही निर्गुण है
शिव ही आदि है
शिव ही अन्त  ह


शिव ही अनन्त है
शिव ही विलय है


शिव ही प्रलय है
शिव ही आधि है


शिव ही व्याधि है
शिव ही समाधि है


शिव ही जप है
शिव ही तप है


शिव ही ताप है
शिव ही यज्ञः है


शिव ही हवन है
शिव ही समिध है


शिव ही समिधा है
शिव ही आरती है


शिव ही भजन है
शिव ही भोजन है


शिव ही साज है
शिव ही वाद्य है


शिव ही वन्दना है
शिव ही आलाप है


शिव ही प्यारा है
शिव ही न्यारा है


शिव ही दुलारा हैै
शिव ही मनन है


शिव ही चिंतन है
शिव ही वंदन है


शिव ही चन्दन है
शिव ही अभिनन्दन है


शिव ही नंदन है
शिव ही गरिमा है


शिव ही महिमा है
शिव ही चेतना है
शिव ही भावना है


 शिव ही गहना है


शिव ही पाहुना है
शिव ही अमृत है
शिव ही खुशबू है
शिव ही मंजिल है


शिव ही सकल जहाँ है
शिव समष्टि है


शिव ही व्यष्टि है
शिव ही सृष्टी है


शिव ही सपना है
शिव ही अपना है


           

 "पानी" के बिना
"नदी" बेकार है
"अतिथि" के बिना
"आँगन" बेकार है
"प्रेम" ना हौ तो 
"सगेसम्बन्धी"बेकार है,


और
जीवन में "शिव भक्ति " ना हौ तो
"जीवन" बेकार है।
इसलिये
जीवन में "शिव भक्ति " ज़रूरी है

जीवन पर आधारित पंग्तिया


जीवन पर आधारित पंग्तिया 


"जीवन ऐसा हो जो-
संबंधों की कदर करे,
और संबंध ऐसे हो जो-
याद करने को मजबूर कर दे..!!


"दुनियां के रैन बसेरे में..


पता नही कितने दिन रहना है,

"जीत लो सबके दिलों को..
बस यही जीवन का गहना है..!!"




गुरु कृपा प्राप्ति का तरीका



गुरु कृपा प्राप्ति का तरीका 


“गुरु कृपा चार प्रकार से होती है ।”


  •  स्मरण से 
  •  दृष्टि से 
  •  शब्द से 
  •  स्पर्श से


1)   जैसे कछुवी रेत के भीतर अंडा देती है पर खुद पानी के भीतर रहती हुई उस अंडे को याद करती रहती है तो उसके स्मरण से अंडा पक जाता है ।
ऐसे ही गुरु की याद करने मात्र से शिष्य को ज्ञान हो जाता है ।
यह है स्मरण दीक्षा।


2)  दूसरा जैसे मछली जल में अपने अंडे को थोड़ी थोड़ी देर में देखती रहती है तो देखने मात्र से अंडा पक जाता है ।
ऐसे ही गुरु की कृपा दृष्टि से शिष्य को ज्ञान हो जाता है ।
यह दृष्टि दीक्षा है



3)  तीसरा जैसे कुररी पृथ्वी पर अंडा देती है ,
और आकाश में शब्द करती हुई घूमती है तो उसके शब्द से अंडा पक जाता है । ऐसे ही गुरु अपने शब्दों से शिष्य को ज्ञान करा देता है ।
यह शब्द दीक्षा है।



4)  चौथा जैसे मयूरी अपने अंडे पर बैठी रहती है तो उसके स्पर्श से अंडा पक जाता है । ऐसे ही गुरु के हाथ के स्पर्श से शिष्य को ज्ञान हो जाता है ।
यह स्पर्श दीक्षा है।

       


 गुरू कृपा ही केवलम्

नमः शिवाय 


शिव -शक्ति रहस्य

शिव -शक्ति रहस्य

  "अर्द्धनारीनरवपु: प्रचंडोSति शरीरवान ।विभजात्मानभिट्युक्तवा तं ब्रह्मान्तर्द धेतत:।।"

      अर्थात सृष्टि के आरंभ में रुद्र आधे शरीर से पुरुष और आधे शरीर से नारी हुए यह जानकर ब्रह्मा संतुष्ट हुए और उसका विभाजन की प्रेरणा दी ताकि सृष्टि का संचालन किया जा सके। शास्त्रों ने पुरुष को तभी पूर्ण माना है जब उससे नारी संयुक्त हो जाती है। नारी के अभाव में वहअपूर्ण,अधूरा रहता है ।भविष्य पुराण के सातवें अध्याय में लिखा है 

"पुमाबद्ध पुमास्तावद्यावाद्भार्या" पुरुष तब तक पूर्णता को प्राप्त नहीं करता जब तक कि उसके आधे अंग को आकर नारी नहीं भर देती। शक्ति शिव की अभिभाज्य अंग हैं। शिव नर के द्योतक हैं तो शक्ति नारी की। वे एक दुसरे के पुरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं।वो संकल्प मात्र करते हैं शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं। शिव सागर के जल के सामान हैं तथा शक्ति लहर के सामान हैं। लहर है जल का वेग। जल के बिना लहर का क्या अस्तित्व है? और वेग बिना सागर अथवा उसके जल का? यही है शिव एवं उनकी शक्ति का संबंध। 



अगर शिव से "ई" की मात्रा हटा दी जाए, तो वह महज शव रह जाता है। शक्ति जब शांत होती है, तब वह शिव कहलाती है। ये दोनों तत्व ब्रह्मांड का आधार हैं।

नमः शिवाय 




प्राणायाम ध्यान की गुप्त बाते


प्राणायाम ध्यान की गुप्त बाते 



आप सभी को प्राणायाम - ध्यान और प्राणचिकत्सा के बारे में विस्तार से बताते है, 
सर्व प्रथम प्राणायाम, ध्यान व प्राण चिकत्सा  क्या है ? व कैसे करना चाइये?
प्राणायाम द्वारा प्राणशक्ति का आगमन करना या उसे बढ़ाना है | 

प्राणशक्ति  क्या  है?

अपन यहां बैठे हैं अपने अंदर सांस चल रहा है, इतनी गर्मी में भी अपना शरीर गरम हो रहा है हम खाना खाते हैं तो  शरीर पाचन क्रिया होती है और अपने शरीर में यह सब कौन कर रहा है ? क्या शरीर यह कार्य कर रहा है ? या दिमाग  यह कार्य कर रहा है? अपना शरीर तो एक यंत्र है और कोई भी यंत्र बिना बिजली के द्वारा नहीं चलता है| दिमाग भी आत्मा चैतन्य के प्रकाश से प्रकाशित है | बहुत बार हम देखते हैं कि आदमी अपने अंतिम समय तक काम करता है यानी उसका दिमाग जीवन के अंतिम समय तक चालू रहता है पर एक के बाद एक यह सब सिस्टम बंद होते जाते है? वह किसलिए? शरीर तो हमारा यही रह जाता है और हम कहते उसके प्राण चले गए शरीर चलाने की जीवन शक्ति को प्राण शक्ति कहते है हमारे शरीर में जो ऊर्जा के रूप में शक्ति कार्य कर रही है इसलिए इस ऊर्जा के द्वारा हम जीवित हैं वह ऊर्जा ही प्राण शक्ति है | अब तो बहुत स्वाभाविक रूप से पता चल गया होगा कि जीवन शक्ति बढ़ानी हो तो शरीर का स्वस्त होना, मन का शांत चित आनंदित होना जरूरी है यदि यह शक्ति कम हो तो शरीर अस्वस्थ होगा तो मन भी अशांत और  चिड़चिड़ा होगा | प्रणायाम यानी प्राण ऊर्जा को रीचार्ज करने की पद्धति है इस के द्वारा हमारे शरीर के सभी चक्र को एक्टिव हो जाते है| इस प्रक्रिया द्वारा प्राणायाम नाडी शोधन होता है तो शरीर स्वस्थ मन शांत और प्रफुल्लित हो जाते हैं|


ध्यान मन और शरीर की निर्विचार अवस्ता है |जब प्राणशक्ति  बढ़ती है तो ध्यान स्वत ही चालू हो जाता है | केंद्र में हम फ़िलहाल ध्यान का अभ्यास कर रहे है | ध्यान का अभ्यास यानि शरीर और  मन को जानना समझना - प्राणऊर्जा को अनुभव करने का अभ्यास |
कोई बालक जब नियमित रूप से ध्यान करता है तो उस के समझने की शक्ति बहुत बाद जाती है | पढ़ाई लिखाई में भी बहुत त्रीव रूप से आगे बढ़ जाता है और जीवन में भी हमेशा शांत चित और सही निर्णय ले सकते है | कोई व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार हो और वो नियमित रूप से ध्यान -प्राणायाम करे तो धीरे-धीरे वो व्यक्ति सम्पूर्ण रूप से स्वस्त हो सकता है | प्राणायाम और ध्यान के रोजाना अभयास से व्यक्ति स्व-चिकत्सक बन कर खुद के सम्पूर्ण रोग दूर कर सकता है|
ध्यान का मुख्या लाभ क्या है ?  
कोई भी कार्य में आपना ध्यान हो तो उस का परिणाम केसा आएगा? और कार्य में आपन ध्यान न हो तो कैसा परिणाम आएगा ? ध्यान से पढना और बगेर ध्यान से पढना क्या सही है ? ध्यान से खाना बनाना और बेमन  खाना बनाना  क्या सही है ? ध्यान के नियमित रूप से अभ्यास करने से मन शांत हो जाता है | ध्यान के अभ्यास से आत्मविश्वास बढ़ता है | प्राणायाम और ध्यान से शरीर और मन रिलैक्स होता है और मानसिक तनाव मिट जाता है|
प्राण चिकित्सा क्या है ?
प्राण चिकित्सा यानि अस्वस्थ व्यक्ति को प्राण ऊर्जा दे कर स्वस्थ करना | कोई व्यक्ति जब बीमार पड़ता है तो उस का मुख्य करण है की शरीर की प्राण ऊर्जा घट जाये या उस के चक्र में तकलीफ हो या चक्र बंद हो और प्राण शक्ति उस चक्र तक पहुच नहीं पति | जब प्राण चिकित्सक किसी व्यक्ति को देखता है तो उसे पता चल जाता है की व्यक्ति के किस चक्र में तकलीफ है और प्राणचिकित्सक उस व्यक्ति पर प्राण ऊर्जा प्रवाहित करता है और धीरे-धीरे उस व्यक्ति का वो चक्र एक्टिव हो जाता है और वो रोग मूल रूप से मिट जाता है | कही बार जब डॉक्टर भी मना कर दे और वो व्यक्ति प्राणचिकित्सक के पास आवे तो वो व्यक्ति भी सम्पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाता है|

जब हमारे घर में कोई विधुत  प्रवाह वाली वास्तु लाये और उस  समय अगर बिजली न हो तो वो वास्तु कार्य नहीं करेगी | शरीर को प्राण ऊर्जा  रूपी बिजली न मिले तो शरीर भी ठीक से कार्य नहीं करेगा | जैसे की कोई भी बीमार व्यक्ति को उस के पुरे शरीर को प्राण विधुत दे तो वो सम्पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाता है व पुनः अपने कार्य करने लग जाता है | हम जानते है की भारतीय संस्कृति में शक्तिपात किये हुए कही संत, साधु, महात्मा अपनी विधुत शक्ति से बहुत से लोगो को रोग मुक्त  कर के स्वस्थ किया है |


प्राण क्या है ? प्राण एक तत्त्व है , एक अणु है , एक शक्ति है | प्राण विधुत शक्ति का एक गुण है | फर्क इतना है विधुत को बुद्धि नई होती और प्राण को बुद्धि होती है, वो बुद्धिशाली है, प्राण जिवंत शक्ति है | प्राण के बिना जीवन नहीं है. 

नमः शिवाय 

Thank You





श्री दुर्गा दुर्गर्तिशमनी माला

श्री दुर्गा दुर्गर्तिशमनी माला 



दुर्गा दुर्गर्तिशमनी दुर्गापद्विनिवारिणी |

दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी ||
दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा |
दुर्गमग्यानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला ||
दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी |
दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता ||
दुर्गमग्यानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी |
दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी ||
दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी |
दुर्गमाँगी दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी ||
दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गभा दुर्गदारिणी ||

|ॐ नमश्चण्डिकायैः|ॐ दुर्गार्पणमस्तु||


नमः शिवाय् 
भय से मुक्ति पाने के लिए माँ दुर्गा स्तुति।

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भाग्य कि चाबी

भाग्य कि चाबी



एक पान वाला था। जब भी पान खाने जाओ ऐसा लगता कि वह हमारा ही रास्ता देख रहा हो। हर विषय पर बात करने में उसे बड़ा मज़ा आता। कई बार उसे कहा की भाई देर हो जाती है जल्दी पान लगा दिया करो पर उसकी बात ख़त्म ही नही होती।


"एक दिन अचानक कर्म और भाग्य पर बात शुरू हो गई।
तक़दीर और तदबीर की बात सुन मैनें सोचा कि चलो आज उसकी फ़िलासफ़ी देख ही लेते हैं। मैंने एक सवाल उछाल दिया।
'मेरा सवाल था कि आदमी मेहनत से आगे बढ़ता है या भाग्य से ?'
और उसके जवाब से मेरे दिमाग़ के सारे जाले ही साफ़ हो गए।
कहने लगा,  

आपका किसी बैंक में लाकर तो होगा?
उसकी चाबियाँ ही इस सवाल का जवाब है। हर लाकर की दो चाबियाँ होती हैं।  एक आप के पास होती है और एक मैनेजर के पास।
आप के पास जो चाबी है वह है परिश्रम और मैनेजर के पास वाली भाग्य।
जब तक दोनों नहीं लगतीं ताला नही खुल सकता।
 
"आप कर्मयोगी पुरुष हैं ओर मैनेजर भगवान।"



आप को अपनी चाबी भी लगाते रहना चाहिये।पता नहीं ऊपर वाला कब अपनी चाबी लगा दे। कहीं ऐसा न हो की भगवान अपनी भाग्यवाली चाबी लगा रहा हो और हम परिश्रम वाली चाबी न लगा पायें और ताला खुलने से रह जाये ।
 


Namah Shivay

कर्म का फल

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अपने ज्ञान को ध्यान में बदल लो!


अपने ज्ञान को ध्यान में बदल लो !





                    " बुद्ध के जीवन में घटना है उनके अंतिम दिन की। सुबह हुई है, पक्षियों ने गीत गाए हैं, फूल खिले हैं और उन्होंने अपने सारे शिष्यों को इकट्ठा किया है, और उनसे कहा है कि मैं तुम्हें एक सुखद समाचार देता हूं।
ध्यान करना, उन्होंने कहा :  मैं तुम्हें एक सुखद समाचार देता हूं। वे सब निश्चित बहुत आतुर हो उठे। क्योंकि बुद्ध ने चालीस वर्षों के शिक्षण में कभी भी यह न कहा था कि मैं तुम्हें एक सुखद समाचार देता हूं। हालांकि उनके हर शब्द में सिवाय सुखद समाचार के और कुछ भी न था। आज कौन सी अनूठी बात घटनी थी? आज कौन सा कोहिनूर उनके शब्दों में जगेगा? आज कौन सा सूरज उगेगा? एक सन्नाटा छा गया।
बुद्ध ने कहा, आज मैं शरीर छोड़ रहा हूं। जीवन को बहुत देख लिया। जीवन को बहुत जी लिया। आज मैं मौत के अंधेरे में प्रवेश कर रहा हूं। लेकिन वह अंधेरा दूसरों के लिए होगा। वह अंधेरा मेरे लिए नहीं है। मैं इतना ही ज्योतिर्मय, इतना ही प्रकाशोज्ज्वल उस अंधेरे से भी गुजर जाऊंगा जैसे जीवन से गुजरा हूं। इसलिए मैंने कहा कि तुम्हें एक सुखद समाचार देता हूं। मृत्यु का समाचार और सुखद। तुम्हें कुछ पूछना हो, तुम पूछ लो।
दस हजार भिक्षुओं में किसकी हिम्मत थी और किसकी जुर्रत थी कि जिस आदमी ने चालीस वर्षों तक हर बात को समझाया हो, आज मरने की घड़ी में भी उसको चैन से न मरने दिया जाए। उनकी आंखों में आंसू थे लेकिन उनकी जुबानों पर कोई सवाल नहीं था। उन्होंने कहा, हमें कुछ पूछना नहीं है। आपने हमें इतना दिया है कि जितना हमने कभी सोचा भी न था। आपने हमारे वे उत्तर भी हमारे हाथों में थमा दिए हैं जिनके लिए हमारे पास प्रश्न भी नहीं हैं। अब हम आपसे क्या पूछें?
तो बुद्ध ने कहा : मैं विदा ले सकता हूं? और उन्होंने आंखें बंद कीं। और घटना बड़ी प्यारी है कि उन्होंने पहले चरण में शरीर को छोड़ दिया। दूसरे चरण में मन को छोड़ दिया। तीसरे चरण में हृदय को छोड़ दिया।

और तभी एक गांव से, पास के गांव से एक आदमी भागा हुआ आया और उसने कहा कि ठहरो, चालीस साल से बुद्ध मेरे गांव से गुजरते रहे हैं लेकिन मैं अंधा आदमी हूं। हमेशा सोचता रहा कि अगली बार जब आएंगे तब मिल लूंगा। यूं जल्दी भी क्या है? और कभी मेहमान घर में थे, कभी दुकान पर भीड़ थी और कभी पत्नी बीमार थी। और बहाने ही खोजने हों तो अंतहीन बहाने उपलब्ध हैं। बुद्ध आते रहे, जाते रहे। अभी—अभी मैंने सुना कि वे जीवन छोड़ रहे हैं। और मुझे एक प्रश्न पूछना है। बुद्ध के प्रमुख शिष्य आनंद ने कहा, अब देर हो गयी, अब बहुत देर हो गयी। वे तो जा भी चुके।
लेकिन बुद्ध ने आंखें खोल दीं और बुद्ध ने कहा, आनंद, तू मेरे ऊपर दोषारोपण करवा देगा। आने वाली सदियां कहेंगी कि मैं जिंदा था और एक आदमी मेरे द्वार से प्यासा लौट गया। शरीर छूट जाए, मन छूट जाए, हृदय छूट जाए लेकिन मैं तो हूं; और मैं तो कभी छूटने वाला नहीं हूं। तुम मेरे शरीर को जाकर अरथी पर चढ़ाकर जला देना। लेकिन अगर किसी ने हृदय से भरकर मुझसे प्रश्न पूछा तो उसे उत्तर मिल जाएगा। क्योंकि मैं तो हूं, मैं तो रहूंगा। मुझे जलाने का कोई उपाय नहीं है और मुझे मिटाने का कोई उपाय नहीं है। मैं अमृत हूं।  इस देश की प्रार्थना बड़ी अदभुत है। दुनिया में बहुत मंदिर हैं और बहुत मस्जिदें हैं और बहुत गिरजाघर हैं लेकिन उनकी प्रार्थनाएं बचकानी हैं। सिर्फ इस देश ने प्रार्थना की है कि हमें क्षणभंगुर से शाश्वत की ओर ले चलो। इसमें कोई भी बात शूद्र नहीं है। और यह प्रार्थना किसी और से नहीं की गयी है। क्योंकि कोई और तुम्हें ले जा नहीं सकता। केवल तुम ही, और केवल तुम ही मृत्यु से अपने को अमृत की ओर ले जा सकते हो। 

अपने जानने की सारी क्षमता को स्वयं पर केंद्रित कर लो। दूसरे शब्दों में मैं इसे ध्यान कहता हूं। ज्ञान दूसरे का होता है, ध्यान अपना होता है। ज्ञान पराए का होता है, ध्यान स्वयं का होता है। अपने ज्ञान को ध्यान में बदल लो। तो इसके पहले कि तुम्हारी अरथी उठे, तुम उसे जान लोगे जिसकी कोई अरथी नहीं उठती है और न कभी उठ सकती है।


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भगवान् कब और कैसे मिलते है ! (कहानी )

 भगवान् कब और कैसे मिलते है !


                       "एक राजा सायंकाल में महल की छत पर टहल रहा था. अचानक उसकी दृष्टि महल के नीचे बाजार में घूमते हुए एक सन्त पर पड़ी. संत तो संत होते हैं, चाहे हाट बाजार में हों या मंदिर में अपनी धुन में खोए चलते हैं. राजा ने महूसस किया वह संत बाजार में इस प्रकार आनंद में भरे चल रहे हैं जैसे वहां उनके अतिरिक्त और कोई है ही नहीं. न किसी के प्रति कोई राग दिखता है न द्वेष.
संत की यह मस्ती इतनी भा गई कि तत्काल उनसे मिलने को व्याकुल हो गए.

उन्होंने सेवकों से कहा इन्हें तत्काल लेकर आओ.सेवकों को कुछ न सूझा तो उन्होंने महल के ऊपर ऊपर से ही रस्सा लटका दिया और उन सन्त को उस में फंसाकर ऊपर खींच लिया.
चंद मिनटों में ही संत राजा के सामने थे. राजा ने सेवकों द्वारा इस प्रकार लाए जाने के लिए सन्त से क्षमा मांगी. संत ने सहज भाव से क्षमा कर दिया और पूछा ऐसी क्या शीघ्रता आ पड़ी महाराज जो रस्सी में ही खिंचवा लिया !

राजा ने कहा- एक प्रश्न का उत्तर पाने के लिए मैं अचानक ऐसा बेचैन हो गया कि आपको यह कष्ट हुआ.
संत मुस्कुराए और बोले- ऐसी व्याकुलता थी अर्थात कोई गूढ़ प्रश्न है. बताइए क्या प्रश्न है.
राजा ने कहा- प्रश्न यह है कि भगवान् शीघ्र कैसे मिलें, मुझे लगता है कि आप ही इसका उत्तर देकर मुझे संतुष्ट कर सकते हैं ? कृपया मार्ग दिखाएं.
सन्त ने कहा‒‘राजन् ! इस प्रश्न का उत्तर तो तुम भली-भांति जानते ही हो, बस समझ नहीं पा रहे. दृष्टि बड़ी करके सोचो तुम्हें पलभर में उत्तर मिल जाएगा.
राजा ने कहा‒ यदि मैं सचमुच इस प्रश्न का उत्तर जान रहा होता तो मैं इतना व्याकुल क्यों होता और आपको ऐसा कष्ट कैसे देता. मैं व्यग्र हूं. आप संत हैं. सबको उचित राह बताते हैं.
राजा एक प्रकार से गिड़गिड़ा रहा था और संत चुपचाप सुन रहे थे जैसे उन्हें उस पर दया ही न आ रही हो. फिर बोल पड़े सुनो अपने उलझन का उत्तर.
सन्त बोले- सुनो, यदि मेरे मन में तुमसे मिलने का विचार आता तो कई अड़चनें आतीं और बहुत देर भी लगती. मैं आता, तुम्हारे दरबारियों को सूचित करता. वे तुम तक संदेश लेकर जाते.
तुम यदि फुर्सत में होते तो हम मिल पाते और कोई जरूरी नहीं था कि हमारा मिलना सम्भव भी होता या नहीं.
परंतु जब तुम्हारे मन में मुझसे मिलने का विचार इतना प्रबल रूप से आया तो सोचो कितनी देर लगी मिलने में ?
तुमने मुझे अपने सामने प्रस्तुत कर देने के पूरे प्रयास किए. इसका परिणाम यह रहा कि घड़ी भर से भी कम समय में तुमने मुझे प्राप्त कर लिया.
हे राजन् ! इसी प्रकार यदि भगवान् को पाने की व्याकुलता हो तो भगवान् तत्काल तुम्हारे सामने आ जाएंगे
राजा ने पूछा- परंतु भगवान् के मन में हमसे मिलने का विचार आए तो कैसे आए और क्यों आए ?
सन्त बोले- तुम्हारे मन में मुझसे मिलने का विचार कैसे आया ?

राजा ने कहा‒ जब मैंने देखा कि आप एक ही धुन में चले जा रहे हैं और सड़क, बाजार, दूकानें, मकान, मनुष्य आदि किसी की भी तरफ आपका ध्यान नहीं है, उसे देखकर मैं इतना प्रभावित हुआ कि मेरे मन में आपसे तत्काल मिलने का विचार आया.



सन्त बोले- यही तो तरीका है भगवान को प्राप्त करने का. राजन् ! ऐसे ही तुम एक ही धुन में भगवान् की तरफ लग जाओ, अन्य किसी की भी तरफ मत देखो, उनके बिना रह न सको, तो भगवान् के मन में तुमसे मिलने का विचार आ जायगा और वे तुरन्त मिल भी जायेंगे.


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नमः शिवाय
Jeevan Ka sach

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शिवयोग संदेश

   शिवयोग  संदेश
नमः शिवाय

सभी शिवयोगी शुभ चिंतकों से तक यह संदेश पहुँचाएं  ऐसे पाखंडियों से सावधान जो आपको जाने अंजाने में पाप करने पर मजबूर करें.
नीचे दिए गये लिंक पर शिवयोग से जुड़े सभी अधिकारिक सोशियल मीडीया प्लॅटफॉर्म की सूची पाएं और इन सभी बिंदुओं को गौर से पढ़ें और सभी गुरु बंधुओं के साथ शेयर करें. 
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1) शिवयोग आश्रम का कोई भी वॉटसैप ग्रूप नहीं है तो वॉटसैप पर बँट रही जानकारो आश्रम की तरफ से नहीं है| किसी भी वॉटसैप ग्रूप को शिवयोग आश्रम से मान्यता नहीं है| किसी भी वॉटसैप ग्रूप पर मिल रही जानकारी आश्रम की मंज़ूरी नहीं है| ऐसे ग्रूप में साधक अपने जोखिम पर ही शामिल हों|
  

2) शिवयोग किसी भी प्रकार का हीलिंग ग्रूप नहीं चला रहा| यदि कोई भी ऐसा कह रहा है की शिवयोगीयों का कोई हीलिंग ग्रूप है, वह असत्य भाषण दे रहा है|

3) अगर कोई आपसे शिवयोग हीलिंग के नाम पर मिलने को कह रहा है या ऐसी कोई भी संदिग्ध गतिविधि का हिस्सा बन रहा है तो उससे दूरी बनाएँ और हितैषी होने के नाते अपनों का भी सही मार्गदर्शन करें|

4) शिवयोग हीलिंग में साधक किसी को भी स्पर्श नहीं करता है| ऐसे दुष्ट व्यक्ति से बचें जो शिवयोग हीलिंग के नाम पार आपको चुने का प्रयास करे| शिवयोग हीलिंग एक बहुत ही पवित्र प्रार्थना है जिसे केवल सूक्ष्म रूप से विधिवत दिया जाता है| इसमें किसी दूसरे व्यक्ति को छूने का कोई प्रावधान नहीं है| 

5)  यदि कोई आपसे शिवयोग सेवा के रूप में किसी भी प्रकार की राशि माँगता है तो समझ लीजिए वह आपको ठग रहा है क्योंकि शिवयोग में सेवा अपनी मेहनत की कमाई से खुद की जाती है न की किसी से माँग कर|

6) किसी भी शिवयोग शिविर में सीखी हुई साधना का वर्णन, विवेचन, विश्लेषण अथवा चर्चा मात्र भी करना पाप कर्म है| शिविर में बैठकर जितना आपको स्वयं समझ में आए उसमें संतोष ढूँडने का प्रयास करें और भाव डाल कर जो भी सीखा है उसे प्रतिदिन नियामत रूप से करने का अभ्यास डालें|

7)  शिवयोग सभी महिलाओं को देवी माँ का रूप देखता है| शिवयोग में अध्यात्म के नाम पर जोड़े बनाना, आत्मिक मिलन जैसी बेतुकी प्यार मोहब्बत की बातें करना बिल्कुल ही वर्जित है और शिवयोग सिद्धांतों के ठीक विपरीत हैं और ऐसी किसी भी आशिक़ जोड़ी बनाने को शिवयोग की स्वीकृति नहीं है|

8) आत्म साक्षात्कार का कोई भी छोटा रास्ता नहीं है| इंटरनेट पर या जीवन में कहीं भी किसी भी प्रकार का प्रलोभन पाकर कभी भी मोक्ष प्राप्ति नहीं हो पाएगी चाहे वह साधना के कदमों या स्तरों पर एक मामूली चर्चा ही क्यूँ न हो|

9) वॉटसैप और ऐसे माध्यमों को, जिन्हें शिवयोग की अधिकारिक रूप से स्वीकृति प्राप्त नहीं है, ऐसे माध्यमों पर कभी भी निर्भर न करें| 

10) केवल शिवयोग के स्वीकृत माध्यमों से ही जानकारी प्राप्त करें| इनकी सूची इस पृष्ठ पर दी है

11) अपनी निजी परिचय जैसे की फ़ोन नंबर या घर का पता किसी को भी न दें|

12) अधिकृत सभाओं से परे कहीं भी अलग से सम्मिल्लित होने की प्रथा को आश्रम की सहमति नहीं है|

13) शिवयोग हीलिंग को केवल अपने परिवार जनों या ज़्यादा से ज़्यादा करीबी जानकारों तक सीमित रखें| इस विषय में बाबाजी का कथन यहाँ सुनें  https://www.youtube.com/watch?v=9fau1dloc0c

14) किसी भी प्रकार की दुविधा, प्रश्न या संशय मिटाने के लिए साधना करें या फॉर शिवयोग के अधिकृत सूत्रों पर ही संपर्क करें|

15) शिवयोग के नाम पर कहीं भी कोई ग़लत प्रचलन यदि आप कहीं भी देखें तो तुरंत आश्रम को सूचित करें (media@shivyog.com)

16) शिवयोग से जुड़ी किसी भी गतिविधि, जानकारी या सूचना को फैलाने से पहले शिवयोग के सभी अधिकृत माध्यमों से सुनिश्चित कर लें की क्या वह संदेश सच है या किसी की मनघड़ंत बात है| यदि आप विश्वस्त नहीं हैं की जो जानकारी आप देने जेया रहे हैं वह पक्की है, तो उसे शेयर न करें और कर्म दोष से बचें| यदि आप सही मायने में सेवा देना चाहते हैं तो सभी को केवल शिवयोग के अधिकारिक सूत्रों की जानकारी उपलब्ध करवाएं जिनकी सूची नीचे दिए गये लिंक में है

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Namah Shivay

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WHEN TO BE SILENT

WHEN TO BE SILENT

1.  Be silent - in the heat of anger.
2.  Be silent - when you don't have all the facts.


3.  Be silent - when you haven't verified the story.


4.   Be silent - if your words will offend a weaker Person.


5.  Be silent - when it is time to listen.


6.  Be silent - when you are tempted to make light of
     holy things.


7.  Be silent - when you are tempted to joke about  sin.


8.  Be silent - if you would be ashamed of your word  later.


9.  Be silent - if your words would convey the wrong impression.


10. Be silent - if the issue is none of your business.


11. Be silent - when you are tempted to tell an  outright lie.


12. Be silent - if your words  will damage someone  else's reputation.


13. Be silent - if your words will damage a friendship.


14. Be silent - when you are feeling critical.


15. Be silent - if you can't say it without screaming.


16. Be silent - if your words will be a poor reflection of your friends and family.


17. Be silent - if you may  have to eat your words later.


18. Be silent - if you have already said it more  than one time.


19. Be silent - when you are tempted to flatter a wicked person.


20. Be silent - when you are supposed to be working instead.


21. Be silent - when your words do not do any good to anyone
       including yourself.



"WHOEVER GUARDS HIS MOUTH AND TONGUE KEEPS HIS SOUL FROM TROUBLES"
Namah shivay

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Beautiful Line

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BEAUTIFUL LINES

WRITTEN THESE 10 BEAUTIFUL LINES. READ and TRY to UNDERSTAND the DEEPER MEANING of THEM.
 

1). PRAYER is not a "spare wheel" that YOU PULL OUT when IN trouble, but it is a "STEERING WHEEL" that DIRECT the RIGHT PATH THROUGHOUT LIFE.

2). Why is a CAR'S WINDSHIELD so LARGE & the REAR VIEW MIRROR so small? BECAUSE our PAST is NOT as IMPORTANT as OUR FUTURE. So, LOOK AHEAD and MOVE ON.

3). FRIENDSHIP is like a BOOK. It takes a FEW SECONDS to BURN, but it TAKES YEARS to WRITE.

4). All THINGS in LIFE are TEMPORARY. If they are GOING WELL, ENJOY them, they WILL NOT LAST FOREVER. If they are going wrong, don't WORRY, THEY CAN'T LAST LONG EITHER.

5). Old FRIENDS are GOLD! NEW friends are DIAMONDS! If you GET a DIAMOND, DON'T FORGET the GOLD! To HOLD a DIAMOND, you ALWAYS NEED a BASE of GOLD!

6). Often when WE LOSE HOPE and THINK this is the END, GOD SMILES from ABOVE and SAYS, "RELAX, SWEETHEART; it's JUST a BEND, NOT THE END!"

7). When GOD SOLVES your PROBLEMS, you HAVE FAITH in HIS ABILITIES; when GOD DOESN'T SOLVE YOUR PROBLEMS, HE has FAITH in YOUR ABILITIES.

8). A BLIND PERSON asked GOD: "CAN THERE be ANYTHING WORSE THAN LOSING EYE SIGHT?" HE REPLIED: "YES, LOSING YOUR VISION!"

9). When YOU PRAY for OTHERS, GOD LISTEN to YOU and BLESSES THEM, and SOMETIMES, when you are SAFE and HAPPY, REMEMBER that SOMEONE has PRAYED for YOU. 

10). WORRYING does NOT TAKE AWAY TOMORROW'S TROUBLES; IT TAKES AWAY today's PEACE. 

If you ENJOYED this, please COPY it and PASS it to OTHERS. It may BRIGHTEN SOMEONE else's DAY, too.

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Message from Ishan Ji     

Message from Ishan Ji                    


Children are the future, true spirituality is not just about fixing that which is broken or fine tuning and servicing that which has been thoroughly taxed.
Sometimes spirituality is about inventing and innovating. Sometimes the wide road must be forsaken to create a swifter path. A path where the horse is no longer the only means but an honorary symbol on ones Ferrari. Fix the past and one is happy but invent the future and one is enlightened.
The simplest measure of ones spirituality can be when one looks at ones life, if all effort goes on firefighting then even if the body is of a man , the mind is still an animal but if ones energy goes in creation of the future then ones mind is with god.
Mansions are built in years and start to crumble in decades. Palaces are built in decades and last centuries.
Each child is a palace, a fort, a castle. Our job is to carefully lay the foundations and if we succeed then each generation can build upon the past for a grander future.


Elders must be respected but children are to be revered for all that we have comes from elders but all we will gain will come from a child. A shiv yogis age is measured in lifetimes. Your child may be wiser then you will ever be and great are the men who not just accept such an eventuality but works in order till it remains the only possibility.
Blessings and regards


Namah Shivay

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जीवन का गहना

जीवन का गहना



"आशा ऐसी हो जो-
      मंज़िल  तक ले जाएँ,
             मंज़िल  ऐसी हो जो-
           जीवन जीना सीखा दे..!



जीवन ऐसा हो जो
     संबंधों की कदर करे,
         और संबंध ऐसे हो जो-
  याद करने को मजबूर कर दे..!!


"दुनियां के रैन बसेरे में..
   पता नही कितने दिन रहना है,
       "जीत लो सबके दिलों को..
  बस यही जीवन का गहना है..!!"

 
 

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हँसना और हँसाना


हँसना और हँसाना



हँसना और हँसाना

     हँसना और हँसाना कोशिश
                      है मेरी ,
        
  हर कोई खुश रहे, यह चाहत
                      है मेरी ,
          
भले ही मुझे कोई याद करे,
                 या ना करे !
             
लेकिन हर अपने को याद
          करना ये आदत हैं मेरी ॥


           
     
इसी तरह हस्ते रहिये , मुस्कुराते रहिए , मुझे फॉलो करना मत भूलना  मै आपका प्यारा दोस्त रोशन कुमार आपका शुक्रिया  करता हु   
         
Thank you 

Shiv Yog Bimonthly Digital magazine soon!


FIRST MAJOR GOOD NEWS OF 2017





Shiv Yog Bimonthly Digital magazine

* Made by both the Masters 
* Under the guidance of Guru Ma
* Subscriptions opening February
* First issue by first quarter of 2017
* Essential read for whole family
* Including comics for kids
* Food (Shiv Yog cooking)
* Shiv Yog Fitness
* Shiv Yog children
* Shiv Yog Sadhna
* Special message directly from Baba ji in every issue




The must have e-magazine for the spiritual reader!
Coming soon!



Namah shivay


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कर्म भोग 


कर्म भोग



पूर्व जन्मों के कर्मों से ही हमें इस जन्म मं माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नि, प्रेमी-प्रेमिका, मित्र-शत्रु, सगे-सम्बन्धी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते नाते हैं, सब मिलते हैं । क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है!

सन्तान के रुप में कौन आता है ?
  वेसे ही सन्तान के रुप में हमारा कोई पूर्वजन्म का 'सम्बन्धी' ही आकर जन्म लेता है । जिसे शास्त्रों में चार प्रकार से बताया गया है
  ऋणानुबन्ध  :
पूर्व जन्म का कोई ऐसा जीव जिससे आपने ऋण लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धन नष्ट किया हो, वह आपके घर में सन्तान बनकर जन्म लेगा और आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा, जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो जाये ।
  शत्रु पुत्र  
पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिये आपके घर में सन्तान बनकर आयेगा और बड़ा होने पर माता-पिता से मारपीट, झगड़ा या उन्हें सारी जिन्दगी किसी भी प्रकार से सताता ही रहेगा । हमेशा कड़वा बोलकर उनकी बेइज्जती करेगा व उन्हें दुःखी रखकर खुश होगा ।
  उदासीन पुत्र 
इस प्रकार की सन्तान ना तो माता-पिता की सेवा करती है और ना ही कोई सुख देती है । बस, उनको उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ देती है । विवाह होने पर यह माता-पिता से अलग हो जाते हैं ।
  सेवक पुत्र  :
पूर्व जन्म में यदि आपने किसी की खूब सेवा की है तो वह अपनी की हुई सेवा का ऋण उतारने के लिए आपका पुत्र या पुत्री बनकर आता है और आपकी सेवा करता है । जो  बोया है, वही तो काटोगे । अपने माँ-बाप की सेवा की है तो ही आपकी औलाद बुढ़ापे में आपकी सेवा करेगी, वर्ना कोई पानी पिलाने वाला भी पास नहीं होगा ।

आप यह ना समझें कि यह सब बातें केवल मनुष्य पर ही लागू होती हैं । इन चार प्रकार में कोई सा भी जीव आ सकता है । जैसे आपने किसी गाय कि निःस्वार्थ भाव से सेवा की है तो वह भी पुत्र या पुत्री बनकर आ सकती है । यदि आपने गाय को स्वार्थ वश पालकर उसको दूध देना बन्द करने के पश्चात घर से निकाल दिया तो वह ऋणानुबन्ध पुत्र या पुत्री बनकर जन्म लेगी । यदि आपने किसी निरपराध जीव को सताया है तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आयेगा और आपसे बदला लेगा ।
  इसलिये जीवन में कभी किसी का बुरा ना करें । क्योंकि प्रकृति का नियम है कि आप जो भी करोगे, उसे वह आपको इस जन्म में या अगले जन्म में सौ गुना वापिस करके देगी । यदि आपने किसी को एक रुपया दिया है तो समझो आपके खाते में सौ रुपये जमा हो गये हैं । यदि आपने किसी का एक रुपया छीना है तो समझो आपकी जमा राशि से सौ रुपये निकल गये ।


 ज़रा सोचिये, "आप कौन सा धन साथ लेकर आये थे और कितना साथ लेकर जाओगे ? जो चले गये, वो कितना सोना-चाँदी साथ ले गये ? मरने पर जो सोना-चाँदी, धन-दौलत बैंक में पड़ा रह गया, समझो वो व्यर्थ ही कमाया । औलाद अगर अच्छी और लायक है तो उसके लिए कुछ भी छोड़कर जाने की जरुरत नहीं है, खुद ही खा-कमा लेगी और औलाद अगर बिगड़ी या नालायक है तो उसके लिए जितना मर्ज़ी धन छोड़कर जाओ, वह चंद दिनों में सब बरबाद करके ही चैन लेगी ।"


 मैं, मेरा, तेरा और सारा धन यहीं का यहीं धरा रह जायेगा, कुछ भी साथ नहीं जायेगा । साथ यदि कुछ जायेगा भी तो सिर्फ नेकियाँ ही साथ जायेंगी । इसलिए जितना हो सके नेकी कर,
सतकर्म कर ।
श्रीमद्भगवद्गीता



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God is here

Solve Heart problem